लोगो से लगातार मेलजोल रहा गोपाल राय की जीत की वजह
* अनिल वशिष्ठ को झेलना पड़ा अपनों का विरोध
– अश्वनी भारद्वाज –
नई दिल्ली ,आम आदमी पार्टी के दिल्ली प्रदेश के संयोजक तथा दिल्ली सरकार के पूर्व मंत्री गोपाल राय एक बार फिर से बाबरपुर की जंग जीतने में कामयाब रहे हैं | उन्होंने भारतीय जनता पार्टी के अनिल वशिष्ठ को करीब बीस हजार मतों से शिकस्त दी | हालांकि पिछले विधानसभा चुनाव की तुलना में इस बार उनकी जीत का मार्जन करीब 13 हजार कम रहा | लेकिन जो जीता वही सिकन्दर ,पिछले विधानसभा चुनाव में गोपाल राय नें भाजपा के कई बार विधायक रहे नरेश गौड़ को 33 हजार से अधिक वोटों से हराया था | उस चुनाव में गोपाल राय को 84 हजार 776 वोट मिले थे जबकि नरेश गौड़ को 51 हजार 714 वोट मिले थे ,जबकि कांग्रेस प्रत्याशी अविन्क्षा जैन को महज 5 हजार 131 वोट ही मिल पाए थे |
जबकि इस चुनाव में गोपाल राय की वोट घटकर 76 हजार 192 रह गई वहीं भाजपा प्रत्याशी अनिल वशिष्ठ को नरेश गौड़ से कहीं ज्यादा 57 हजार 198 वोट मिले वहीं कांग्रेस प्रत्याशी इसराख खान को भी पिछली कांग्रेस प्रत्याशी अविन्क्षा जैन से अधिक वोट 8 हजार 797 वोट मिले | सत्ता विरोधी लहर के बावजूद गोपाल राय सम्मानजनक स्कोर के साथ दूसरी बार जीत दर्ज करने में कामयाब रहे | लोगो के बीच सहज उपलब्धता उनकी जीत का मजबूत आधार रही ,उनका सरल व्यक्तित्व भी लोगो को पसंद आया ,पार्टी की की पोस्ट और केबिनेट मंत्री होने के बावजूद लोगो से गजब का जन सवांद तथा जनसम्पर्क उनकी जीत का सबसे बड़ा कारण बना |
भाजपा द्वारा ब्राह्मण प्रत्याशी उतारने के बावजूद बड़ी संख्या में ब्राह्मणों का आशीर्वाद उन्हें मिला | जिसकी वजह बाबरपुर बस टर्मिनल के पास उनके अथक प्रयास से बनाया गया भगवान श्री परशुराम द्वार रहा | अब ये मत कहना एक ब्राह्मण होने के नाते हम उनका गुणगान कर रहे हैं इसमें कोई दो राय नहीं हमारे
उनसे बहुत अच्छे तालुक है लेकिन अनिल वशिष्ठ से भी हमारे उतने ही गहरे सम्बन्ध है | अनिल वशिष्ठ की हार की वजह कोई और नहीं बल्कि भाजपा के कुछ असन्तुस्ठ नेता रहे | इस विधानसभा से बड़ी तादाद में लोगो नें दावेदरी की हुई थी जिन्हें यह शिकायत थी अनिल नें पूरा जीवन कांग्रेस की राजनीती की
है और कुछ समय पहले ही वे भाजपा में आये थे और टिकिट ले आये | समझ गए ना आप ,दिल के फफोले जल उठे सीने के दाग से ,घर को आग लग गई घर के चिराग से | हमारे कुछ भाजपा के मित्र बताते हैं अनिल नें चुनाव भी कुशल रणनीति से नहीं लड़ा रिपोर्ट तो यहाँ तक भी है अनेक भाजपा कार्यकर्ताओं को मनाने में भी वे सफल नहीं हो पाए | ये भी हो सकता है कांग्रेस और भाजपा की रणनीति और राजनीती में भी जमीन आसमान का फर्क वे समझ नहीं पाए | कुल मिलाकर गोपाल राय को जहां अपनों के साथ-साथ गैरों का भी सहयोग मिला वहीं अनिल वशिष्ठ अपनों से भी जूझे और गैरों से भी | आज बस इतना ही …