लोकसभा चुनावों में आप से समझौता कर आत्मघाती कदम नहीं उठाना चाहती कांग्रेस
* क्षेत्रीय नेता समझा रहे हैं हाईकमान को गणित
* लाभ के स्थान पर रहेगा हर हिसाब से घाटे का सौदा
– अश्वनी भारद्वाज –
नई दिल्ली ,राष्ट्रीय स्तर पर विपक्षी एकता की चर्चा के बीच आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय नेता संदीप पाठक के बयान के बाद कि आम आदमी पार्टीदिल्ली में लोकसभा की सभी सीटों पर अकेले चुनाव लड़ेगी को कांग्रेस हलके में ले रही है | और पार्टी के रणनीतिकार पाठक की इस घोषणा को गीदड़ भभकी के अलावा कुछ नहीं समझ रहे |
पार्टी सूत्रों का मानना है अध्यादेश पर कांग्रेस को अपने पाले में खींचने के मकसद से पाठक नें यह बयान दिया था लेकिन कांग्रेस में इस पर कोई खास प्रतिकिर्या नहीं हुई | अलबत्ता दिल्ली तथा पंजाब के कांग्रेसी क्षत्रपों नें पार्टी को अपनी राय दी है इस पार्टी से जितना दूर रहा जाए वही पार्टी हित में होगा | पूर्व में दिल्ली में समर्थन देना पार्टी को आज तक भुगतना पड़ रहा है | आज आलम यह है कि कांग्रेस के वोट बैंक पर तो आप पार्टी नें कब्जा कर ही लिया है
पार्टी के अनेक छोटे बड़े नेता भी आप पार्टी में शामिल हो चुके हैं और कई अभी शामिल होने की जुगत भिड़ा रहे हैं | कांग्रेस पार्टी के रणनीतिकारों का मानना है पिछले लोकसभा चुनावो में भी आम आदमी पार्टी नें प्रयास किया था कांग्रेस से तालमेल कर चुनाव लड़ा जाए लेकिन उस समय दिल्ली कांग्रेस की अध्यक्ष शीला दीक्षित सहित कई दिग्गजों नें इस सुझाव का विरोध किया था और कांग्रेस अकेले चुनाव लड़ी थी | कांग्रेस भले ही एक भी सीट पर जीत दर्ज नहीं कर सकी लेकिन पांच लोकसभा सीटों पर पार्टी प्रत्याशी दूसरे स्थान पर रहे थे | रणनीतिकारों का मानना है देश की जनता भी जानती है भाजपा का विकल्प कांग्रेस ही है लिहाजा लोकसभा चुनाव में भाजपा विरोधी वोट कांग्रेस को ही मिलेगें यदि आम आदमी पार्टी अकेले भी चुनाव लडती है तो उसका दिल्ली सहित अन्य राज्यों में कोई खास असर नहीं पड़ने वाला |
जहां तक अध्यादेश का सवाल है कांग्रेस नें अपने पत्ते नहीं खोले है लेकिन कांग्रेस को मालुम है वह साथ दे या विरोध करे अध्यादेश तो पारित होना ही है लिहाजा पार्टी इस मुद्दे पर तो विपक्षी एकता नहीं तोड़ने वाली लेकिन जहां तक लोकसभा चुनावो का सवाल है उस पर फैंसला इतनी आसानी से नहीं होने वाला | कांग्रेस को आभास है अरविन्द केजरीवाल ना केवल दिल्ली अपितु पंजाब,राजस्थान ,गुजरात ,मध्यप्रदेश हरियाणा सहित और भी कई राज्यों में भागीदारी चाहेगें और कांग्रेस शायद इस पर राजी हों | जहां तक विपक्षी दबाव का सवाल है वह भी ज्यादा नहीं रहने वाला मोटे तौर पर यदि विपक्ष में सीटों को ले समझोता होता भी है तो जो पार्टी पिछले चुनाव में पहले या दूसरे स्थान पर रही थी उसी के उमीदवार को इस बार भी उतारा जाएगा | उस गणित को केजरीवाल मानने वाले नहीं लिहाजा कांग्रेस के पास केजरीवाल की पार्टी से दूरी बनाने का वजनदार कारण भी मिल जाएगा | यानी सांप भी मर जाएगा और लाठी भी नहीं टूटेगी वाली बात हो जायेगी |