बस्ती सीट पर BSP ने घोषित किया प्रत्याशी, बीजेपी के ‘बागी’ मायावती को दिलाएंगे जीत?
बसपा प्रत्याशी दयाशंकर मिश्र ने कहा कि वे राजनैतिक कार्यकर्ता हैं, जमीन से जुड़े हुए हैं. इसके बावजूद उन्हें पार्टी में सम्मान नहीं मिला, अब वह बीजेपी के खिलाफ चुनाव लड़ेंगे.
बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने सभी अटकलों पर विराम लगाते हुए बस्ती लोकसभा सीट से अपना प्रत्याशी घोषित कर दिया है. बीजेपी में बड़ी सेंधमारी करते हुए बसपा ने भाजपा के पूर्व जिला अध्यक्ष रहे दयाशंकर मिश्र को पार्टी की सदस्यता दिलाई उसके बाद उन्हें बस्ती लोकसभा का प्रत्याशी घोषित कर दिया. दयाशंकर मिश्र भाजपा में अपनी उपेक्षा से काफी दिनो से नाराज चल रहे थे जिसके चलते उन्होंने ये कदम उठाया और बीजेपी की राह में ही रोड़ा बनकर खड़े हो गए है. कार्यकर्ता सम्मेलन को संबोधित करते हुए दयाशंकर मिश्र ने बस्ती लोकसभा के बीजेपी प्रत्याशी और दो बार के सांसद रहे हरीश द्विवेदी पर जमकर अपनी भड़ास भी निकाली.
बसपा प्रत्याशी दयाशंकर मिश्र ने कहा कि वे राजनैतिक कार्यकर्ता हैं, जमीन से जुड़े हुए हैं. इसके बावजूद उन्हें पार्टी में सम्मान नहीं मिला. जब से ये चर्चा शुरू हुई कि वे बसपा से बस्ती लोकसभा का चुनाव लड़ने जा रहे हैं तब से बीजेपी प्रत्याशी और सांसद हरीश द्विवेदी लगातार उनसे बात करने का प्रयास करते रहे और उन्हें चुनाव न लड़ने के लिए हर हथकंडा भी अपनाया. मगर बहन जी का आशीर्वाद मिलने के बाद वे पूरी तरह से आश्वस्त हो गए कि इसी पार्टी में उन्हे सम्मान मिलेगा. इसलिए आज वे कसम खा रहे हैं कि मरते दम तक वे बहुजन समाज पार्टी में ही रहकर राजनीति करेंगे. बसपा प्रत्याशी दयाशंकर मिश्र ने कहा कि हरीश द्विवेदी अपने कार्यकर्ताओं को कोई तरजीह नहीं देते जिस वजह से आज उनका चहुओर विरोध हो रहा. ये चुनाव उन्हे कार्यकर्ता मिलकर लड़ाएंगे और कोई ये ना समझे कि बस्ती लोकसभा की राह इतनी आसान होगी.
बस्ती लोकसभा सीट पर इस बार मुकाबला रोचक होने की उम्मीद है. इस सीट पर दो बार शानदार जीत दर्ज करा चुके सांसद हरीश द्विवेदी पर भाजपा नेतृत्व ने इस बार फिर भरोसा जताया है, वहीं इंडिया गठबंधन की ओर से पूर्व कैबिनेट मंत्री को उम्मीदवार बनाया गया है. वे समाजवादी पार्टी के टिकट पर मौजूदा सांसद को चुनौतियां दे रहे हैं.
परिस्थितियां नहीं बदलीं तो दोनो प्रत्याशियों का आमने सामने का मुकाबला होना तय है. दोनों बस्ती जनपद के राजनीति की मुख्य धुरी हैं. हरीश द्विवेदी विद्यार्थी जीवन से ही राजनीति में सक्रिय हैं और पार्टी नेतृत्व का विश्वास जीतने में हमेशा कायमाब रहे हैं. जब-जब लोकसभा चुनाव आते हैं अटकलों का दौर शुरू हो जाता है कि इस बार हरीश द्विवेदी को पार्टी टिकट नहीं देगी. उनकी जगह आधा दर्जन नाम हवा में तैरने लग जाते हैं. लेकिन सभी कयासों को दरकिनार कर हरीश द्विवेदी अपने नाम पर नेतृत्व की मुहर लगवाने में सफल हो जाते हैं. हरीश द्विवेदी के खेमे में अनगिनत समर्पित कार्यकर्ता हैं और विरोधी भी. जैसे ही चुनाव का बिगुल बजता है उनके विरोधी सक्रिय हो जाते हैं.
आरोप है कि उन्होंने सबको साथ लेकर चलने की बजाय अनेकों को हाशिये पर कर दिया. तमाम कार्यकर्ता पार्टी की मुख्य धारा में आने को तरस गए लेकिन उनकी मंशा पर पानी फिर गया. हालांकि इसका हरीश द्विवेदी के ऊपर कोई फर्क नहीं पड़ा. इस बार वे हैट्रिक लगाने के चक्कर में हैं, लेकिन उनका मुकाबला एक बार फिर पूर्व कैबिनेट मंत्री रामप्रसाद चौधरी से है. उन्हें पिछड़ों, दलितों का नेता कहा जाता है. इस कम्यूनिटी में उनकी अच्छी खासी पकड़ है. वे 9वीं लोकसभा में खलीलाबाद से सांसद रहे. इसके बाद वे 1993 से 2017 तक वे लगातार कप्तानगंज से विधायक रहे. साल 2017 में वे भाजपा प्रत्याशी सीए चन्द्रपकाश शुक्ला से 6827 वोटों के अंतर से चुनाव हार गये थे.
रामप्रसाद चौधरी के बारे में लोगों का मानना है कि वे हर तरह से सक्षम हैं. धनबल, जनसमर्थन, चुनावी रणनीति आदि में उनका कोई मुकाबला नहीं है. जाहिर है कि वे चुनाव जीतने के लिये हर हथकंडा अख्तियार करेंगे. साल 2019 में बसपा प्रमुख मायावती ने उन्हे पार्टी विरोधी गतिविधियों में संलिप्तता के चलते पार्टी से निकाल दिया. साल 2019 में उन्होने सपा-बसपा गठबंधन से चुनाव लड़ा लेकिन 30354 वोटों से हरीश द्विवेदी ने उन्हें चुनाव हरा दिया था. राजकिशोर सिंह कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े थे और तीसरे नम्बर पर रहे. साल 2014 में हरीश द्विवेदी का मुकाबला सपा के बृजकिशोर सिंह डिम्पल से था. हरीश द्विवेदी 33562 वोटों से चुनाव जीत गए, बृजकिशोर सिंह डिम्पल दूसरे और रामप्रसाद चौधरी तीसरे स्थान पर रहे. परिणाम के साथ साथ 2014 और 2019 के चुनाव की परिस्थितियों को भी समझने की जरूरत है. 2014 में बस्ती की सभी 5 विधासभा सीटों पर भाजपा का परचम था.