संविधान और आरक्षण का मुद्दा भारी दिखा चार सौ पार के नारे पर इन्हीं समीकरणों में उलझे है रणनीतिकार

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संविधान और आरक्षण का मुद्दा भारी दिखा चार सौ पार के नारे पर इन्हीं समीकरणों में उलझे है रणनीतिकार

– अश्वनी भारद्वाज –

नई दिल्ली ,जैसे जैसे चार जून नजदीक आ रही है प्रत्याशियों और उनके समर्थकों की धडकनें तेज होती जा रही है | राजधानी के इतिहास में शायद यह पहला ऐसा चुनाव है जो बिना किसी लहर के लड़ा गया | और यही वजह है बड़े से बड़े ज्ञानी और राजनातिक पंडित यह कयास लगाने में नाकाम साबित हो रहे है आखिर ऊंट किस करवट बैठने जा रहा है | भाजपा जिस नारे चार सौ पार के सहारे चुनावी वैतरणी पार करने के सपने संजोये थी उसकी हवा तो चुनाव के दूसरे चरण में ही उस वक्त निकल गई थी जब राहुल गांधी नें सविधान और आरक्षण का मुद्दा उठा चुनावी हवा का रुख मोड़ दिया था और तभी से भाजपा का चार सौ पार का सपना भी चकनाचूर होने लगा था और प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी सहित तमाम भाजपा दिग्गज सभी मुददों को भूल आरक्षण और सविंधान पर बोलने लगे थे | प्रधानमन्त्री नें तो आरक्षण को ले कांग्रेस पर यहाँ तक हमला बोल दिया था यदि कांग्रेस आ गई तो वर्तमान आरक्षण की दिशा मुस्लिमों की तरफ मुड जायेगी | लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी और दिल्ली सहित अनेक राज्यों में सविंधान और आरक्षण के मुद्दे नें दलित मतो का धुर्वीकरण कर दिया था | मुल्स्लिम पहले से ही गठ्बन्धन के पाले में थे | समझ गए ना आप लम्बे समय यानी कई दशक के बाद दलित और मुस्लिम लामबंद हो कांग्रेस तथा गठ्बन्धन के पाले में खड़े दिखे | और हम पहले ही जिक्र कर चुके हैं जहां तक मोदी मैजिक का सवाल है वह गुजरात के अलावा इस चुनाव में कहीं नहीं दिखा | यानी मुकाबला मोदी बनाम मोदी विरोधी होकर रह गया | सीधे सीधे समीकरण हैं जिन सीटों पर दलित और मुस्लिम चालीस फीसदी से ज्यादा है वहां कुछ भी परिणाम आ सकते हैं | क्योंकि दोनों पक्षों की गिनती की शुरुवात चालीस -चालीस फीसदी के बाद से ही शुरू होनी है | क्योंकि किसी भी सीट पर भाजपा का कैडर भी चालीस फीसदी से कम नहीं है , बाकी बचे बीस फीसदी में जिस प्रत्याशी का प्रबन्धन तथा अन्य जातीय समीकरण फिट बैठ रहे होंगे उसी का पलड़ा भारी रहने वाला है | इस चुनाव की खास बात यह रही भाजपा राम मन्दिर को भी मुद्दा नहीं बना सकी उसके टार्गेट पर केवल कांग्रेस और गठ्बन्धन ही रहा | इतना जरुर है भाजपा सन्गठन की द्रष्टी से गठ्बन्धन से जरुर बीस है और जमीनी स्तर पर उसका सन्गठन दिखता नजर आया जबकि गठ्बन्धन सविधान आरक्षण और अरविन्द केजरीवाल के सहारे ही चलता दिखा | भाजपा का प्रचार जहां उसके कार्यकर्ताओं नें किया वही गठ्बन्धन में यह कमान दलित और मुस्लिमों नें कार्यकर्ता बन बखूबी निभाई | जिसे देख गठ्बन्धन के कार्यकर्ताओं में भी जोश भर गया | और उन्होंने मुकाबला रोचक बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी | आज बस इतना ही …

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