चुनावों की घोषणा से पहले ही हावी होता दिख रहा है रेवड़ी कल्चर

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रेवड़ी कल्चर
चुनावों की घोषणा से पहले ही हावी होता दिख रहा है रेवड़ी कल्चर

चुनावों की घोषणा से पहले ही हावी होता दिख रहा है रेवड़ी कल्चर

* भाजपा हो या कांग्रेस तलाश रही हैं रेवड़ियों की काट

– अश्वनी भारद्वाज –

नई दिल्ली ,रेवड़ी का नाम सुनते ही हमारे मुहं में तो पानी आ जाता है | और सामने हो तो मजा ही आ जाता है | शुगर होने के बाजूद एक-दो मुट्ठी तो लपेट ही लेते हैं | और यदि कोई रोहतक से ले आये तो पूरा डिब्बा ही गायब हो जाता है | रेवड़ी का गुणगान इसलिए किया जा रहा है आज लोकसभा का चुनाव हो या विधानसभा का सभी में रेवड़ी ही रेवड़ी की चर्चा सुनने को मिलती है |

दिल्ली विधानसभा चुनाव में तो चारों तरफ ही रेवड़ी की गूंज सुनाई दे रही है और हो भी क्यों ना मुफ्त में जो मिलने की चर्चा है | रेवड़ी कल्चर कोई नया नाम नहीं है बहुत पुराना है लेकिन करीब दो साल पहले प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी नें अरविन्द केजरीवाल सरकार द्वारा दिल्ली की जनता को मुफ्त सुविधाएँ देने पर तंज कसा था कि लोग मुफ्त रेवड़ियों के चक्कर में पड़ जाते हैं और विकास को भूल जाते हैं | फिर क्या हुआ शुरू हो गया देश की सियासत में सियासी रेवड़ियों का सिलसिला | ना केवल केजरीवाल नें बल्कि भाजपा की मध्यप्रदेश सरकार और महाराष्ट्र सरकार मुफ्त की रेवड़ियों के सहारे ही सत्ता में दुबारा लौटी |

झारखंड में भी रेवड़ी का असर दिखा , अब भला सियासत में रेवड़ी जनक केजरीवाल कहाँ पीछे रहने वाले थे उन्होंने तो रेवड़ी को ही अपना एजेंडा बना डाला | करीब तीन माह से दिल्ली की हर गली,हर नुक्कड़ पर शुरू हो गई रेवड़ी सभाएं | समझ गए ना आप केजरीवाल की पार्टी के लोग जनता को समझाने लग गए यदि भाजपा दिल्ली में आ गई तो उन्हें मुफ्त की रेवड़ी मिलनी बंद हो जायेगी | विकास मिले या नहीं मिले लेकिन लोग रेवड़ी नहीं छोड़ना चाहते | रेवड़ी तो दिल्ली में शीला दीक्षित सरकार नें भी जमकर बांटी थी लेकिन उसका ना तो प्रचार किया गया और ना ही उस वक्त सियासत में रेवड़ी शब्द का जन्म हुआ था | शीला सरकार नें रेवड़ी बाटने के साथ-साथ इतना विकास किया था कि दिल्ली की तस्वीर ही बदल डाली थी | लेकिन केजरीवाल की घोषित रेवड़ियाँ उनके कराए विकास पर भारी पड़ी जो आज तक कांग्रेस सत्ता से दूर है |

ना केवल कांग्रेस अपितु भाजपा भी सत्ता सुख से ढाई दशक से महरूम है | चुनाव की घोषणा से पहले ही रेवड़ी जनक और कई तरह की रेवड़ियाँ ले मार्किट में कूद पड़े हैं | भाजपा हो या कांग्रेस इन रेवड़ियों की काट तलाश रही हैं और शायद मार्किट में और बड़े साइज की रेवड़ियों की बौछार हो इस सम्भावना से इनकार नहीं किया जा सकता | लेकिन यह तय है भ्रस्टाचार हो या विकास के मुददों पर हावी रहने वाली हैं रेवड़ियाँ | जनता को कौनसी रेवड़ी पसंद आती है यह तो वक्त ही बतायेगा लेकिन इतना समझ लीजिये रेवड़ी की काट भी रेवड़ी ही बन सकती है | आज बस इतना ही …

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