दिल्ली में भी राहुल को पहचान करनी होगी कांग्रेस में छिपे विभीषणों की

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राहुल
दिल्ली में भी राहुल को पहचान करनी होगी कांग्रेस में छिपे विभीषणों की

दिल्ली में भी राहुल को पहचान करनी होगी कांग्रेस में छिपे विभीषणों की

* छोटे से ले बड़े तक चुनावों में रहते हैं सक्रिय

– अश्वनी भारद्वाज –

नई दिल्ली ,होली के मौके पर विभीषण की चर्चा ये क्या तुक है ,चर्चा तो होनी चाहिए हिरण्यकश्यप की लेकिन आज आज की जा रही है विभीषण की | देखिये भाई विभीषण नें धर्म मार्ग पर चलते हुए भले ही भगवन श्री राम की मदद की थी लेकिन आज भी यदि परिवार में भीतरघात या विद्रोह की चर्चा होती है तो तुलना विभीषण से ही की जाती है | और शायद इसीलिए कहा जाता है घर का भेदी लंका ढाए ,हजारों करोड़ लोग भले ही विभीषण के रोल की प्रशंसा करते हैं लेकिन अपने पुत्र का नाम कोई भी विभीषण नहीं रखता | समझ गए ना आप कोई भी व्यक्ति अपने कुल का या परिवार का बैरी हो तो समाज उसे कहीं ना कहीं घ्रणा की द्रष्टि से ही देखता है |

यही मामला पार्टी का भी है क्योंकि पार्टी भी एक परिवार ही होती है | आज हम इस टोपिक की चर्चा इसलिए कर रहे हैं कि देश की प्रमुख विपक्षी पार्टी कांग्रेस के सबसे बड़े नेता राहुल गांधी नें अपने गुजरात दौरे के दौरान पार्टी में छिपे विभिषणों पर जमकर प्रहार किया और यहाँ तक कह डाला उन्हें बाहर का रास्ता दिखाया जाना चाहिए | देर आये लेकिन दुरुस्त आये ,यह काम तो उन्हें बहुत पहले ही कर देना चाहिए था क्योंकि ना केवल गुजरात में बल्कि पूरे देश में विभिषणों की भरमार है | राजधानी दिल्ली भी इससे अछूती नहीं है | करीब तीन दशक से तो हम खुद कांग्रेस की राजनीती को बड़े करीब से देख रहे हैं पत्रकार के नजरिये से भी और एक राजनैतिक नजरिये से भी ,स्व.एच.के.एल.भगत से ले चौधरी प्रेम सिंह ,शीला दीक्षित से ले सुभाष चोपड़ा ,जे.पी.अग्रवाल से ले अनिल चौधरी और देवेन्द्र यादव तक सबको हमने नजदीकी से काम करते देखा है और इन सबके लिए बने विभिषणों को भी देखा है | पार्टी में अंतर्कलह तथा गुटबाजी
एक अलग मसला है लेकिन अपनी पार्टी को हरवाने के लिए दूसरी पार्टियों से हाथ मिलाना बेहद निंदनीय है |

हमारा यह मानना है यदि विरोध करना ही है तो पार्टी छोड़ कर करो जैसे अरविन्द्र सिंह लवली नें किया था | लेकिन पार्टी में रहकर या पार्टी की महत्वपूर्ण पोस्ट पर रहकर जो लोग विरोध करते हैं उनके लिए ही विभीषण का दर्जा दिया जाता है | दिल्ली में कम से कम दर्जनों बड़े विभीषणों को तो हम जानते हैं उनकी चर्चा फिर कभी करेगें ,पार्टी हाईकमान को उनकी खोज करनी होगी | विधानसभा चुनाव हो या लोकसभा अथवा नगर निगम चुनाव सभी में सक्रिय हो जाते हैं विभीषण और चुनाव समाप्त होते ही फिर सक्रिय हो जाते हैं अपनी पार्टी में | हालंकि असली विभीषण नें एक बार विद्रोह कर घर वापसी नहीं की थी लेकिन सियासत में ऐसा नहीं है विभीषण का रोल अदा करने के बाद भी लोग नये सिरे से जुगाड़ भिड़ाने लग जाते हैं और तनिक भी चिंता नहीं करते यदि उनका नम्बर लगा तो उनके लिए भी कोई विभीषण बन सकता है | तभी कहा गया है बोया पेड़ बबूल का तो आम कहाँ से खाए |

हम केवल पिछले लोक सभा चुनाव का आज जिक्र करते हैं हालांकि कांग्रेस गठ्बन्धन के तहत केवल तीन सीटों पर लड़ी थी लेकिन कान्ग्रेस में छिपे विभीषणों नें अपने तीनों प्रत्याशियों के साथ-साथ गठ्बन्धन के प्रत्याशियों के लिए भी अपना रोल अदा किया | और पार्टी के साथ-साथ गठ्बन्धन का भी बन्टाधार कर डाला | हालांकि विभीषणों पर लगाम लगाना आसान काम नहीं है लेकिन उनकी पहचान तो की ही जा सकती है ,और राहुल गांधी की बात पर अमल कर कार्यवाही की जाए तो पार्टी में कुछ सुधार भी हो सकता है | लेकिन विभीषणों को शेल्टर देने वाले बड़े विभीषणों पर भी नजर रखनी होगी | आज बस इतना ही …

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