उदयपुर में रात भर खेली जाएगी बारूद की होली, बंदूक और तोप की आवाज से गूंजेगा मेवाड़

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उदयपुर में रात भर खेली जाएगी बारूद की होली, बंदूक और तोप की आवाज से गूंजेगा मेवाड़

उदयपुर में रात भर बारूद की होली खेली जानी है. यह परंपरा मुगलों पर मेवाड़ की जीत का जश्न मनाया जाता है. जैसा तब हुआ था युद्ध वैसा ही हर साल दोहराया जाता है.

रंगों का त्योहार होली फेस्टिवल हर जगह धूमधाम से मनाया गया, लेकिन मेवाड़ यानी उदयपुर में आज (मंगलवार 26 मार्च) रात 10 बजे के बाद से रात भर बारूद की होली खेली जाएगी. मेवाड़ बंदूकों और तोपों की चिंगारियों और उसकी आवाज से गूंज उठेगा. ऐसा लगेगा मानो युद्ध चल रहा है.

यह होगा उदयपुर से 45 किलोमीटर दूर देश में बर्ड विलेज के नाम से पहचाने जाने वाले गांव मेनार में. इसे देखने के लिए दूर दूर से कई पर्यटक और उदयपुर जिलेभर से लोग पहुंचेंगे. जानिए क्या है इसके पीछे कहानी.

450 साल से निभाते आ रहे हैं परंपरा

ग्रामीणों का कहना है कि यहां होली के बाद तीसरे दिन यानी कृष्ण पक्ष द्वितीया को बारूद से होली खेली जाएगी जिसमें तलवारों और बंदूकों की आवाज से हूबहू युद्ध का दृश्य देखने को मिला. ये परंपरा मेनारवासी पिछले सवा 450 साल से अनवरत निभाते आ रहे हैं.

रात एक के बाद एक कई तोप आग उगलेंगी, तड़ातड़ बंदूकें चलेंगी. उदयपुर के गांव मेनार में यह दृश्य किसी युद्ध जैसा ही होगा. इस त्योहार के लिए गांव के युवा जो दुबई, सिंगापुर, लंदन, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका में रहते हैं, वह इस मौके पर सभी गांव पहुंचेंगे.

मुगलों पर मेवाड़ की जीत का जश्न

यह परंपरा मुगलों पर मेवाड़ की जीत का जश्न मनाया जाता है. जैसा तब हुआ था युद्ध वैसा ही हर साल दोहराया जाता है. ग्रामीणों के अनुसार जब मेवाड़ पर महाराणा अमर सिंह का राज्य था तब मेवाड़ में जगह जगह मुगलों की छावनियां थीं. मेनार में भी गांव के पास मुगलों ने अपनी छावनी बना रखी थी.

मेनारिया ब्राह्मण भी मुगल छावनी के आतंक से त्रस्त हो चुके थे. गांव के लोगों ने इकट्ठे होकर युद्ध की योजना बनाई. कूटनीति से काम लेते हुए होली का त्योहार छावनी वालों के साथ मनाना तय हुआ. छावनी (मुगलों) वालों को आमंत्रित किया गया.

गांव के लोगों ने तलवारों, ढालों और हेनियों की सहायता से गैर खेलनी शुरू की. अचानक ढोल की आवाज ने रणभेरी का रूप ले लिया. गांव के वीर छावनी के सैनिको पर टूट पड़े. रात भर युद्ध चला. मुगलों को मार गिराया, तब से आज तक वही दोहराया जाता है.

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