विश्वभर में प्रताड़ित हिन्दुओं को भारत की नागरिकता मिले – शङ्कराचार्य अविमुक्तेश्वरानन्द का प्रस्ताव
ग्रेटेस्ट भूमि भारत
भारतवर्ष को पृथ्वी पर श्रेष्ठतम माना जाता है, जैसा कि ब्रह्मपुराण, विष्णुपुराण, और शिवपुराण में उल्लेखित है। इन धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, जम्बूद्वीप में भारतवर्ष ही कर्मभूमि है, जहां जन्म लेना एक विशेष भाग्य है। इसके अलावा, अन्य भूमियाँ भोगभूमियाँ मानी जाती हैं। किसी भी हिन्दू का भारत से नाता न तोड़ने का मन होता है क्योंकि यह भूमि उनके पूर्व जन्मों के पुण्यों का परिणाम है।
भारत का कानून और नागरिकता
आज भी भारत में यह दुखद स्थिति है कि यदि कोई व्यक्ति किसी अन्य देश की नागरिकता प्राप्त करता है, तो उसे भारत की नागरिकता छोड़नी पड़ती है। यह स्थिति उन हिन्दुओं के लिए और भी पीड़ादायक है जो विश्वभर में प्रताड़ित हो रहे हैं, खासकर बांग्लादेश में।
हिन्दुओं का संघर्ष
शङ्कराचार्य अविमुक्तेश्वरानन्द ने कहा कि यदि किसी हिन्दू को परेशानी हो, तो उसके पास भारत के अलावा कोई दूसरा स्थान नहीं है। जबकि अन्य धर्मों के अनुयायी जैसे ईसाई और मुसलमानों के पास कई देश हैं, जिनमें वे शरण ले सकते हैं। लेकिन हिन्दू, विशेष रूप से बांग्लादेश में, अपनी धार्मिक पहचान के कारण प्रताड़ित हो रहे हैं। बांग्लादेशी हिन्दू धर्म से अपना नाता नहीं छोड़ना चाहते, जिसके कारण उन्हें वहां धार्मिक उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है। जब वे भारत में शरण लेने के लिए आते हैं, तो भारतीय सीमा पर उन्हें लौटाया जाता है, जहां उनकी जान को खतरा होता है।
भारत सरकार से अपील
इस संदर्भ में, परमधर्मसंसद ने भारत सरकार से आग्रह किया है कि भारत के संविधान में कड़े सुरक्षा उपायों के साथ संशोधन किया जाए और एक नया नागरिकता कानून पारित किया जाए। इसके माध्यम से विश्वभर के प्रताड़ित हिन्दुओं को भारत में रहने का अधिकार मिले और एक वर्ष के भीतर उन्हें नागरिकता प्रदान की जाए।
संसद की बैठक और प्रस्ताव
इस मुद्दे पर चर्चा करने के लिए एक बैठक आयोजित की गई, जिसमें प्रतिष्ठित विद्वान और समाजसेवी उपस्थित थे। सभा की अध्यक्षता परमाराध्य शङ्कराचार्य ने की और अंत में उन्होंने धर्मादेश जारी किया, जिसे सभी ने हर-हर महादेव के उद्घोष के साथ पारित किया।
Conclusion
इस प्रस्ताव के साथ शङ्कराचार्य अविमुक्तेश्वरानन्द ने यह स्पष्ट किया कि भारत को अपनी भूमिका और जिम्मेदारी निभानी चाहिए और विश्वभर में प्रताड़ित हिन्दुओं को शरण देने के लिए नागरिकता कानून में आवश्यक बदलाव करना चाहिए।