चातुर्मासिक पर्व एक आत्मा के कलिमल को धोने का पर्व है : आर्षमति माताजी
नई दिल्ली (सी.पी.एन.न्यूज़ ) : षष्ठपट्टाचार्य आचार्य श्री 108 ज्ञान सागर महाराज की शिष्या गणिनी आर्यिका 105 आर्षमति माताजी ने राजधानी दिल्ली के ऋषभ विहार स्थित श्री दिगम्बर जैन मंदिर में चातुर्मास की स्थापना की। इस अवसर पर साध्वी श्री के साथ आर्यिका अमोघमति,अर्पणमति व अंशमति माताजी ने भी चातुर्मास स्थापना की। इस मौके पर बाल ब्रह्मचारिणी अनीता दीदी,ललिता दीदी, कंचन दीदी, भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चा शाहदरा जिलाध्यक्ष विपिन जैन, समाज के प्रधान सुनील जैन, महामंत्री अमरचंद जैन, कोषाध्यक्ष सुखमाल जैन एवं समस्त कार्यकारिणी, लोकेश जैन, मनोज जैन एवं श्रवण सेवा समिति एवं महिला मंडल ऋषभ विहार आदि के साथ-साथ दिल्ली व अन्य शहरों की समाजो के प्रमुख लोग, ज्ञानार्ष भक्त परिवार के विभिन्न शैलियों लोग मौजूद थे, इस मौके पर चातुर्मास स्थापना हेतु मंगल कलश स्थापित किए गए व गुरु पूजन के साथ-साथ गुरु पूर्णिमा का भी आयोजन किया गया
इस मौके पर आचार्य श्री ज्ञान सागर को याद करते हुए साध्वीश्री ने कहा कि हमने भगवान आदिनाथ या महावीर स्वामी को नहीं देखा परतुं आचार्य श्री ज्ञान सागर मुनिराज के रूप में हमने चौबीस तीर्थकर के दर्शन किये जिन्होंने ना जाने कितने पत्थर रूपी श्रावकों को तराश कर पारस बनाया उन्होंने कहा कि आचार्य श्री विद्यासागर व आचार्य श्री ज्ञान सागर जैसे संत ही वर्तमान में भगवान आदिनाथ व भगवान महावीर की प्रतिमूर्ति है |
साध्वीश्री ने कहा कि बचपन के संस्कार हमारी पचपन वर्ष की आयु में काम आते हैं, हम बच्चों में बचपन में जो संस्कार रोपित करते है वह बुढ़ापे मे हमारे ही काम आते हैं उन्होंने चातुर्मास की व्याख्या करते हुए कहा कि चातुर्मासिक पर्व एक आत्मा के कलिमल को धोने का पर्व है। जिस प्रकार वर्षा होने से गली, मोहल्ले की सफाई होती है ठीक उसी प्रकार वर्षा वास से मानव मन की सफाई हो जाती है। उसी प्रकार धर्म आराधना करने से मानव मन की सफाई विषय विकारों की गंदगी सत्संग रूपी वर्षा से धूल जाती है। मोर जब गाता है, नाचता है तो सब को प्रिय लगता है इसी प्रकार एक आत्मार्थी को सत्संग रूपी गंगा में डुबकी लगाना प्रिय लगता है।
उन्होंने कहा कि जैन धर्मानुसार गुरु पूर्णिमा का काफी महत्व है अंतिम तीर्थंकर भगवान महावीर ने आज के दिन ही उनके प्रथम गणधर शिष्य गौतम स्वामी मिले थे और गौतम स्वामी को महावीर भगवान जैसे सतगुरु मिले। इसी कारण इस दिन को गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है।