महाशिवरात्रि के अवसर पर शैव और वैष्णव परंपराओं के संतुलन पर चर्चा। आदि शंकराचार्य की शिक्षाओं और धर्म के व्यापक स्वरूप को लेकर धार्मिक चिंतन।
महाशिवरात्रि के पावन अवसर पर भारत में शैव और वैष्णव परंपराओं को लेकर गहन मंथन हो रहा है। धार्मिक गुरुओं और विद्वानों का मानना है कि शिव आराधना की परंपरा भारत में प्राचीन काल से चली आ रही है, जिसे आज के समय में पुनः एक नई दृष्टि से देखने की आवश्यकता है।
भारत को धर्मभूमि कहा जाता है, जहां धर्म की रक्षा के लिए समय-समय पर ईश्वर अवतार लेते हैं। भारतीय आध्यात्मिक परंपरा में शैव और वैष्णव मतों का विशेष स्थान है, लेकिन इन मतों के बीच संतुलन बनाए रखना एक चुनौती बनी हुई है। महाशिवरात्रि के अवसर पर धार्मिक गुरुओं ने इस विषय पर विचार किया और इसे भारतीय संस्कृति की विविधता से जोड़ा।
आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित अद्वैत मत ने धर्म की संकीर्णताओं को समाप्त करने का प्रयास किया था। उन्होंने बहत्तर विभिन्न मतों का खंडन कर अद्वैत को स्थापित किया, जिसमें शैव और वैष्णव दोनों ही परंपराएं शामिल थीं। लेकिन वर्तमान समय में दक्षिण भारत में वैष्णववाद के उग्र स्वरूप और उत्तर भारत में तुलसीदास रचित रामचरितमानस द्वारा संतुलित धर्म पर चर्चा हो रही है।
शैव और वैष्णव मतों का ऐतिहासिक दृष्टिकोण
शैवागम ग्रंथों के अनुसार, भारत में विभिन्न शैव संप्रदाय विद्यमान हैं, जिनमें दक्षिण भारत का लिंगायत संप्रदाय स्वयं को हिंदू धर्म से अलग मानता है। वहीं, उत्तर भारत में तुलसीदास के रामचरितमानस ने धार्मिक संतुलन बनाए रखा। रामचरितमानस में श्रीराम के बारे में कहा गया है –
“और एक गुप्त मत सबहि कहउँ कछु जोरी।
संतन भजन बिना नर भगति न पावइ मोरी।।”
धर्माचार्यों का मानना है कि वर्तमान समय में इन मतों के बीच संतुलन आवश्यक है, ताकि भारतीय आध्यात्मिक संस्कृति की मूल भावना बनी रहे।
महाशिवरात्रि पर धार्मिक चिंतन
महाशिवरात्रि के अवसर पर विभिन्न धार्मिक विद्वानों ने यह संदेश दिया कि शिव केवल संप्रदायगत आराधना तक सीमित नहीं हैं, बल्कि वे संपूर्ण विश्व के लिए चेतना के प्रतीक हैं। आदि शंकराचार्य ने भी शिव, विष्णु, गणेश, देवी और सूर्य की उपासना को समान रूप से स्वीकार किया था। वेदों में भी शिव के व्यापक स्वरूप का वर्णन मिलता है, जो किसी एक मत तक सीमित नहीं है।
महाशिवरात्रि पर भगवान चंद्रमौलेश्वर की आराधना के साथ यह संकल्प लिया गया कि भारतीय आध्यात्मिकता को पुनः अद्वैत की दिशा में स्थापित किया जाए। धार्मिक गुरु स्वामी मदन सरस्वती और जनार्दन शंकराचार्य ने इस अवसर पर शारदापीठ, द्वारका से भारत में अद्वैत विचार को स्थापित करने की प्रार्थना की।