चार सौ असहाय लोगों का संस्कार कर चुका है दशा परिवर्तन समाज सेवा संगठन : विजय सक्सेना

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चार सौ असहाय लोगों का संस्कार कर चुका है दशा परिवर्तन समाज सेवा संगठन : विजय सक्सेना

* माता पिता से मिले हैं संस्कार ,सौ से ज्यादा लोग जुड़े हैं सन्गठन से
– शिवा कौशिक –

नई दिल्ली , कहावत है जो अक्सर हम सुनते है जैसे “नर सेवा नारायण सेवा” व “दान ऐसे दो की अगर दाएं हाथ से दान करे तो बाएं हाथ को भी पता न चले” लेकिन कलयुग में यह कहावत आपको सिर्फ सुनने को ही मिलेंगी। कलयुग में लोग अच्छाई करने की बात तो करते है लेकिन खुद अच्छाई करने से डरते है। इन कहावतों को अपने जीवन की वास्तविकता में अपनाने वाले इस देश में क्या बल्कि पूरी दुनिया में बहुत ही कम लोग है और यह लोग कोई साधारण लोग नही है यह भगवान के भेजे हुए बंदे होते है क्योंकि अपनी अच्छाई तो सभी करते है लेकिन दूसरों की अच्छाई व समाज की सेवा करने का गुण और त्याग करने की क्षमता भगवान कुछ अपने चुनिंदा नेक बंदों को ही देता है।

आज हम एक ऐसे ही भले इंसान की बात करने जा रहे है जो पिछले दस वर्षों से हर नर में नारायण को देखते हुए उनकी सेवा कर रहा है और सेवा भी इस भाव से कर रहा है की वह अपने द्वारा किए गए नेक कार्यों का कभी भी प्रचार नहीं करता। हम बात कर रहे है भगवान के उस नेक इंसान की जिसने अभी तक तकरीबन चार सौ असहाय परिवारों के मृतक लोगों का अंतिम संस्कार करवाकर उन्हें मोक्ष की प्राप्ति करवाई है, हम बात कर रहे है विजय सक्सेना और 23 अगस्त 2014 में उनके द्वारा शुरू किए गए दशा परिवर्तन समाज सेवा संगठन की। विजय सक्सेना व उनके संगठन के बारे में कुछ भी बताने से पहले हम यह बात स्पष्ट करना चाहते हैं कि विजय सक्सेना ने हमें बहुत मना किया कि हम उनके कार्यों के बारे में उल्लेख ना करें लेकिन हमारे बहुत आग्रह करने पर विजय सक्सेना ने अपने द्वारा किए गए कार्यों के बारे में हमें बताया।

विजय सक्सेना ने बताया की वह अपने संगठन के तहत असहाय एवं गरीब परिवारों के मृतक लोगों का दाह संस्कार कराते है और साल में एक बार विभिन्न श्मशान घाटों से अस्थियां लेकर बृज घाट जाते है जहां विधि विधान से सभी कार्य किया जाता है और अभी तक उनका संगठन 7 बार अस्थियां लेकर बृजघाट उत्तर प्रदेश जा चुका है।

विजय सक्सेना ने बताया की उन्हें इन नेक कार्यों को करने की प्रेरणा उनके पिता स्वर्गीय श्री जय नारायण सक्सेना से मिली। विजय सक्सेना ने आगे बताया की आज उनके संगठन से 100 से भी अधिक लोग जुड़े हुए है जो संगठन में अपनी सेवा देते है। विजय सक्सेना ने बताया की वह अपने संगठन को चलाने के लिए किसी भी सरकार से सहायता नहीं लेते है। विजय सक्सेना ने बताया की किसी के अंतिम समय में और किसी की कठिन परिस्थितियों में उसका सहारा बनकर सांस्कृतिक मूल्यों को बचाना ही हमारे संगठन की मुहिम है। विजय सक्सेना ने बताया की शारदीय नवरात्रों के पहले नवरात्रे पर पर्यावरण को बचाने के लक्ष्य से वह समाज में पौधे वितरण करते है व अन्य दान पुण्य के कार्य करते है। विजय सक्सेना ने बताया की कॉविड के समय में भी उन्होंने कई जरूरतमंद लोगों को कच्चा राशन, भोजन व अन्य जरूरी चीजें उपलब्ध करवाई थी।

विजय सक्सेना ने कहा की इन सेवा के कार्यों को करने में मेरे माताजी, पिताजी और मेरे परिवार ने हमेशा मेरा सहयोग किया है और मेरा यह जीवन समाज को, जरूरतमंद लोगों को समर्पित है। आज अपने इस लेख के माध्यम से हम सलाम करना चाहते हैं विजय सक्सेना को, उनके संगठन को, उनके संगठन से जुड़े लोगों को और हर उस इंसान को जो न सिर्फ इस देश में बल्कि पूरी दुनिया में किसी न किसी तरीके से समाज की, लोगों की सेवा कर रहा है। हम समाज की सेवा करने वाले भगवान के नेक बंदों के लिए बस यही कहेंगे की “यूं तो हर आंख बहुत रोती है, लेकिन हर बूंद अश्क नही होती है पर देख कर रो दे जो ज़माने का गम, उस आंख से जो आंसू गिरे वो मोती है।

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