वार्ड स्तर पर समीक्षा होगी लोकसभा चुनावों परिणामों की, दिल्ली में सन्गठन खड़ा करने की जरूरत 

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वार्ड स्तर पर समीक्षा होगी लोकसभा चुनावों परिणामों की, दिल्ली में सन्गठन खड़ा करने की जरूरत 
– अश्वनी भारद्वाज –

नई दिल्ली ,हर चुनाव के बाद भी पार्टियों में आंकड़ों की समीक्षा का काम शुरू किया जाता है ,यह मंथन कम से कम कांग्रेस में तो शुरू करने की सख्त जरूरत है | भले ही कांग्रेस राजधानी दिल्ली में केवल तीन लोकसभाक्षेत्रों में अपने निशान पर चुनाव लड़ी है लेकिन आगामी विधानसभा चुनावोंको ले कांग्रेस सभी सात लोकसभा क्षेत्रों में अपना जनाधार तलाशेगी इस सम्भावना से इंकार नहीं किया जा सकता | चार जून को परिणाम कुछ भी रहे लेकिन इसे आधार मान पार्टी को एक बार फिर से खड़े होने का प्रयास करना पड़ेगा | लापरवाह लोगो की छुट्टी करनी होगी | इसमें कोई दो राय नहीं कांग्रेस देश भर में पहले से बेहतर करने जा रही है, निश्चित रूप से ये परिणाम कांग्रेस में जान फूंकने का प्रयास भी करेगें | और पार्टी
वर्करों में एक नया जोश भर पायेगें | हालंकि गठ्बन्धन के बावजूद राजधानी दिल्ली में उन परिणामो की उम्मीद कम ही है जितनी पार्टी नेत्रत्व को उम्मीद थी | इसकी एकमात्र वजह सन्गठन की नाकामी ही मानी जायेगी | समझ गए ना आप तमाम समीकरण पक्ष में होने के बावजूद उन्हें नहीं भुना पाना सन्गठन की कमजोरी ही माना जाएगा | यानी जनता गठ्बन्धन को वोट देना चाहती थी और दिल खोलकर दिया भी, लेकिन कांग्रेस का सन्गठन था ही कहाँ ,अनेक पोलिंग स्टेशन ऐसे थे जहां कांग्रेस को अंतिम समय तक एजेंट तक नहीं मिले ,कुछ चालाक ब्लाक अध्यक्षों नें गठ्बन्धन का फायदा उठाते हुए जरुर आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ताओं के नाम इस सूची में शामिल करा अपनी लाज बचा ली थी | यह बात अलग है प्रदेश नेत्रत्व कई माह से वार रूम के माध्यम से पोलिंग एजेंट्स को ट्रेनिंग देने की बात कर रहा था लेकिनी जमीनी हकीकत यही है कि पार्टी के तीनों प्रत्याशियों को अपने स्तर पर ही यह मशक्कत करनी पड़ी बावजूद इसके ट्रेंड तो दूर अपनी पार्टी के अन ट्रेंड लोग भी पर्याप्त मात्र में नहीं मिल पाए | कुछ विधानसभाएं तो ऐसी भी हैं जहां मतगणना के लिए भी ट्रेंड लोग नहीं मिल सके और प्रत्याशियों को दूसरों के भरोसे रहना पड़ा | समझ गए ना आप कुछ गिनती के ब्लाक अध्यक्ष ऐसे हैं जिन्होंने अपनी टीम गठित की हुई है अन्यथा सन्गठन के नाम पर दिल्ली में ब्लाक स्तर पर निल बटा सन्नाटा ही है | जरूरत नीतियों में बदलाव की है | चार-चार चुनाव हार चुके लोगो की पसंद से छुटकारा पा कर ही पार्टी को मजबूत किया जा सकेगा अन्यथा हर चुनाव में हार के बाद केवल समीक्षा ही करते रहनी पड़ेगी| आज बस इतना ही …

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