कर्नाटक चुनाव नतीजे:दिल्ली से दक्षिण दूर है, और दक्षिण से दिल्ली की दूरी भी अधिक है

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कर्नाटक चुनाव नतीजे: दिल्ली से दक्षिण दूर है, और दक्षिण से दिल्ली की दूरी भी अधिक है

चौबीस के चुनाव से पहले कांग्रेस को इस जीत की बड़ी जरूरत थी लेकिन दवाई की इस छोटी डिबिया को बूस्टर डोज मानना भी भूल होगी. चौबीस का चौसर अलग है. वहां खेला अलग है.

कर्नाटक चुनाव 2023 के नतीजों को देखकर नेटफलिक्स पर आई सीरीज ‘क्वीन क्लियोपेट्रा’ की याद आ गई. सीरीज के जिस हिस्से को अभी देख पाया हूं उसमें होता कुछ यूं है कि पोम्पई और जूलियस सीजर के बीच रोम पर कब्जे को लेकर प्रतियोगिता है. मिस्र शुरू में पोम्पई का साथ दे रहा था, इसलिए उसे लगा कि अब चूंकि पोम्पई हार चुका है, इसलिए जूलियस सीजर खफा होगा. लिहाजा मिस्र के शासक पनाह लेने आए पोम्पई को मार डालते हैं. उसके शव को क्षत-विक्षत कर सीजर को भेज देते हैं. लेकिन खुश होने के बजाय सीजर बेहद खफा होता है और मिस्र को सजा देने के लिए निकल पड़ता है. मोरल ऑफ द स्टोरी ये है कि मिस्र के शासकों को रोम की राजनीति और रोमन गर्व के बारे में ठीक से पता न था. बीजेपी के साथ भी ऐसा ही हुआ लगता है.

उत्तर के दांव, दक्षिण का जवाब नहीं

उत्तर में आजमाए बीजेपी के दांव दक्षिण में काम न आए. हिंदी हार्ट लैंड से दक्षिण का दिल जरा अलग है. यूपी और एमपी की तरह दक्षिण में ध्रुवीकरण वोट नहीं दिलाएगा. कोई ताज्जुब नहीं कि जो हिजाब महीनों सुर्खियों में छाया रहा, उसका चुनावी मैदान में नाम तक न लिया गया. चुनाव प्रचार के आखिरी दौर में ‘द केरला स्टोरी’ और ‘बजरंग दल पर सख्ती’ जैसे मुद्दे छाए, लेकिन नतीजे बता रहे हैं कि ये बीजेपी के काम न आए. चुनाव प्रचार के आखिरी दौर में पीएम मोदी की धुआंधार रैलियों से बीजेपी नेताओं को बहुत उम्मीद थी. कर्नाटक के नतीजे बताते हैं कि सिर्फ मोदी के माइलेज से राज्यों में पार्टी मंजिल नहीं पा सकती.

दक्षिण में विकास के मायने अलग

लाभार्थी योजनाओं के बारे में अब ये करीब-करीब तय हो चुका है कि ये उत्तर में चुनाव जिताते हैं. लेकिन समझना होगा कि उत्तर के गरीब राज्यों की तुलना में दक्षिण में विकास का मतलब कुछ और है. दक्षिण में दो वक्त के लिए मुफ्त अनाज चुनाव में निर्णायक नहीं हो सकता. इस लिहाज से आप कांग्रेस के कुछ वादों को याद कीजिए. कर्नाटक में उन्होंने कहा है कि गरीब परिवार के हर शख्स को दस किलो मुफ्त अनाज के अलावा हर घर की महिला प्रमुख को 2 हजार रुपये महीने, हर ग्रेजुएट बेरोजगार को 3 हजार रुपये, हर डिप्लोमाधारी बेरोजगार को 1.5 हजार रुपये और महिलाओं को सरकारी बसों में मुफ्त यात्रा देंगे.

लोकतंत्र नहीं बचा?

कांग्रेस ने लोकल मुद्दों और लोकल नेताओं पर दांव लगाया और बिसात जीत गई. जिस एक मुद्दे पर कांग्रेस और उसके नेताओं ने संसद नहीं चलने दी, उसका जिक्र तक कर्नाटक में नहीं हुआ. जाहिर है ये संसद और देश ही नहीं, कांग्रेस के लिए भी भले की बात है. विपक्ष अक्सर EVM में गड़बड़ी का मुद्दा उठाता है, आज किसी को EVM में कोई गड़बड़ी नहीं दिख रही है. उम्मीद है कि अगले चुनाव में भी विपक्ष और खासकर, कांग्रेस इस बात को याद रखेगी. जिस सांस में EVM को लेकर शिकायत की जाती है, लगभग उसी सांस में कहा जाता है कि देश में लोकतंत्र नहीं बचा, लेकिन आज कांग्रेस कर्नाटक में लोकतंत्र का जश्न मना रही है. तो विपक्ष को इतना निराश-हताश होने की जरूरत नहीं है. अगर वो सही मुद्दे उठाए, स्थानीय नेताओं को भी तरजीह दे, जमीन पर मेहनत करे तो उसके लिए गुंजाइश बाकी है. चौबीस के चुनाव से पहले कांग्रेस को इस जीत की बड़ी जरूरत थी लेकिन दवाई की इस छोटी डिबिया को बूस्टर डोज मानना भी भूल होगी. चौबीस का चौसर अलग है. वहां खेला अलग है.

 

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