कांग्रेस की लेटलतीफी से वर्कर हुआ हताश एवं परेशान
* खोने को कुछ नहीं है फिर भी लंबी इन्तजार
– अश्वनी भारद्वाज –
नई दिल्ली ,लोकसभा चुनाव के लिए कांग्रेस राजधानी दिल्ली में अपने हिस्से की मात्र तीन सीटों के लिए भी प्रत्याशी घोषित नहीं कर पा रही है | इससे किसी और की नहीं बल्कि पार्टी की अपनी ही किरकिरी हो रही है | यह आलम तो तब है जब पार्टी के पास खोने को कुछ नहीं है | पिछले एक दशक से लोकसभा में दिल्ली से कांग्रेस का स्कोर जीरो है और इसी तरह से विधानसभा में भी जीरो | और यही हालात रहे तो इससे आगे बढना मुश्किल है | जहां तक संगठन का सवाल है आधे से ज्यादा ब्लॉक अध्यक्ष अभी तक अपनी नियुक्ति का इन्तजार कर रहे हैं | समझ से परे है बिना हथियार के कांग्रेस रणभूमि में कैसे उतरेगी | कार्यकर्ता पार्टी छोड़-छोड़ कर दूसरी पार्टियों में शामिल हो रहे हैं लेकिन पार्टी की ना तो कोई नीयत है और ना ही नियति |
आप सोच रहे होंगे कांग्रेस पर आज इतना गुस्सा कैसे क्या करे भाई हम तो अपनी पीड़ा व्यक्त ही कर सकते है फैंसला तो पार्टी को ही करना है | पार्टी का यह हाल है लुटने पीटने के बाद भी सबक लेने को तैयार नहीं है इतना कुछ खोने के बाद भी सबकी अपनी-अपनी ढपली और अपना-अपना राग | दूसरी ओर भाजपा है जो जमीनी सन्गठन होने के बावजूद एक माह पूर्व अपने प्रत्याशी घोषित कर चुकी | सन्गठन की मजबूती का आलम यह है कि मेन सन्गठन के साथ साथ कम से कम एक दर्जन प्रकोष्ठ भी पार्टी नें मंडल स्तर पर बनाये हुए है जिनके पदाधिकारी खुद को मोदी समझ कर काम करते हैं | पार्टी के बड़े नेता आज भी कांग्रेस को बीस साल पहले वाली कांग्रेस समझते हैं लेकिन हकीकत में यह ख्वाब के अलावा कुछ और नहीं है | पार्टी को यदि मुकाबले में आना है तो बिना किसी देरी के अपने प्रत्याशी घोषित करने होंगें और अपनी चुनावी रणनीति को धार देनी होगी | पहले ही बहुत देर हो चुकी है और देर पार्टी के लिए आत्मघाती साबित होगी | ऐसा नहीं है कि पार्टी के पास मजबूत चेहरे नहीं है और दावेदारों की कोई लंबी चौड़ी फौज है ,गिनती के दावेदारों में से पार्टी को जातीय समीकरण साधते हुए मजबूत विकल्प चुनना होगा तभी कहीं गठ्बन्धन का फायदा मिलेगा वरना वही ढाक के तीन पात रहने वाले हैं | आज बस इतना ही …