भीलवाड़ा और टोंक सवाई माधोपुर में उम्मीदवारों की किस्मत ईवीएम में कैद, कांग्रेस-बीजेपी में कड़ी टक्कर

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भीलवाड़ा और टोंक सवाई माधोपुर में उम्मीदवारों की किस्मत ईवीएम में कैद, कांग्रेस-बीजेपी में कड़ी टक्कर

राजस्थान की सभी सीटों पर दो चरणों में चुनाव संपन्न हो गया. भीलवाड़ा और टोंक सवाई माधोपुर सहित सभी सीटों पर जीत के लिए सियासी दलों ने पूरी ताकत झोंक दी.

लोकसभा चुनाव के दूसरे चरण में राजस्थान की 13 सीटों पर कमोबेश शांतिपूर्ण ढ़ग से मतदान संपन्न हो गया है. इस बार प्रदेश की भीलवाड़ा लोकसभा सीट पर साल 2019 के मुकाबले 5 फीसदी कम मतदान हुआ.

भीलवाड़ा लोकसभा क्षेत्र में कुल 8 विधानसभा सीटें हैं, जिसमे मांडल, आसींद, जहाजपुर, शाहपुरा, भीलवाड़ा, मांडलगढ़, गंगापुर, सहाड़ा और हिंडोली विधासभा क्षेत्र शामिल है. इन सभी आठों विधानसभा सीटों पर कुल 60.37 मतदाताओं ने अपने मताधिकार का इस्तेमाल किया.

सीपी जोशी के प्रतिष्ठा की लड़ाई

भीलवाड़ा लोकसभा सीट पर 26 अप्रैल को हुए मतदान में क्षेत्र के 21 लाख 47 हजार 159 मतदाताओं में से 12 लाख 96 हजार 228 मतदाताओं ने मतदान किया. लोकतंत्र के पर्व में 8 लाख 50 हजार 931 मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग नहीं किया. इस बार भीलवाड़ा लोकसभा क्षेत्र में 60.37 फीसदी मतदान हुआ है.

सियासी गलियारों में मतदान कम होने से बीजेपी के नुकसान की आशंका जताई जा रही है. दूसरे चरण हुए मतदान के दौरान राजस्थान की 13 लोकसभा सीटों में सिर्फ टोंक सीट पर 56.58 फीसदी मतदान हुआ. भीलवाड़ा में साल 2019 के मुकाबले इस बार 5 फीसदी कम मतदान हुआ.

भीलवाड़ा सीट पर इस बार कांग्रेस प्रत्याशी सीपी जोशी और बीजेपी से दामोदर अग्रवाल मैदान में हैं. दोनों के बीच कांटे की टक्कर है. कयासों, दावों और अटकलों पर 4 जून को मतगणना के बाद विराम लगेगा कि ऊंट किस करवट बैठा है

अब बात करते हैं टोंक सवाई माधोपुर लोकसभा सीट की है, जहां इस बार सबसे कम मतदान हुआ है. इस सीट से हरीश हरीश चंद्र मीणा कांग्रेस के टिकट पर और सुखबीर सिंह जौनपुरिया बीजेपी से किस्मत आजमा रहे हैं. इस बार यहां पर 56.58 फीसदी मतदान हुआ, जो साल 2019 के मुकाबले 6.86 फीसदी कम है.

कब कौन जीता?

टोंक सवाई माधोपुर लोकसभा सीट पर परिसीमन के बाद साल 2009 में पहली बार हुए लोकसभा चुनाव कांग्रेस ने जीत हासिल की था. इसके उलट 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में इस सीट पर बीजेपी जीत हासिल की थी. पिछले दो बार से इस सीट पर सुखबीर सिंह जौनपुरिया बीजेपी से सांसद हैं और वो यहां से तीसरी बार मैदान में हैं.

सुखबीर सिंह जौनपुरिया ने साल 2014 में पहली बार बीजेपी के टिकट पर टोंक सवाई माधोपुर सीट से जीत हासिल करके दिल्ली पहुंचे थे. उन्होंने पूर्व भारतीय क्रिकेट कप्ता मोहम्मद अजहरुद्दी को हराया था. 2019 में जौनपुरिया के सामने कांग्रेस ने नमो नारायण मीना को अपना प्रत्याशी बनाया, इससे पहले नमो नारायण मीना यहां से कांग्रेस से 2009 में जीत दर्ज कर चुके थे.

इस सीट पर दूसरी बार जीत हासिल करने के लिए इस बार कांग्रेस ने राजस्थान सरकार के पूर्व डीजीपी और देवली उनियारा से दूसरी बार विधायक हरीश चंद्र मीणा को प्रत्याशी बनाया. इस बार टोंक सवाई माधोपुर लोकसभा सीट पर स्थानीय मुद्दों के साथ रेलवे स्टेशन की मांग, बीसलपुर बांध का पानी, बेरोजगारी का मुद्दा हावी रहा.

एससी-एसटी वोटर्स की भूमिका अहम

इसी सीट पर कहीं न कहीं जातिवाद का फैक्टर भी हावी रहा. जातिगत समीकरणों पर नजर डालें तो यहां पर एससी वोटर्स निर्णायक भूमिका में हैं. एससी वोटर्स की संख्या यहां पर चार लाख से अधिक है. इसके बाद एसटी मतदाताओं की संख्या है, जिनकी संख्या 3 लाख 25 हजार से अधिक है.

इस सीट पर अल्पसंख्यक मतदाताओं की भी अच्छी खासी तादाद है. टोंक सवाई माधोपुर लोकसभा सीट पर सबसे अधिक मतदान टोंक विधासभा सीट हुआ है, यहां पर 21 फीसदी से अधिक मतदान हुआ. इस सीट पर सचिन पायलट विधायक हैं. इस सीट से भले हरीश चंद्र मीणा कांग्रेस से मैदान में हो, लेकिन यहां की हार-जीत सचिन पायलट की प्रतिष्ठा से जुड़ा है.

प्रचार अभियान में कांग्रेस-बीजेपी ने झोंकी ताकत

कांग्रेस प्रत्याशी हरीश चंद्र मीणा का शुमार सचिन पायलट के करीबी नेताओं में की जाती है. हरीश चंद्र मीणा ने अपना चुनावी प्रचार भी इसी आधार पर आगे बढ़ाया. बीजेपी प्रत्याशी सुखबीर सिंह जौनपुरिया का पूरा चुनावी अभियान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे पर लड़ा. पूरे चुनाव में प्रचार अभियान के दौरान कांग्रेस बीजेपी नेताओं ने एक दूसरे पर जमकर निशाना साधा और मतदाताओं को रिझाने में कोई कसर नहीं छोड़ी.

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