गुर्जर और ब्राह्मण लामबंद हो रहे हैं मनोज तिवारी के पक्ष में
* पूर्वांचली और दलितों में भी भाजपा की है गहरी पैठ
– अश्वनी भारद्वाज –
नई दिल्ली ,हैडलाइन पढ़ कर आप समझ रहे होंगे टिकिट की तरह क्या मनोज तिवारी चुनाव में भी रहने वाले हैं सभी पर भारी ,जी हाँ अभी तक तो हमें ऐसे ही लग रहा है | मनोज तिवारी पिछले दो माह से उत्तर पूर्वी दिल्ली संसदीय क्षेत्र को एक दो बार नहीं बल्कि तीन -तीन बार नाप चुके है | नाराज कार्यकर्ताओं से ले दूसरी पार्टी के नाराज लोगो तक से कई कई बार मिल माहौल अपने पक्ष में बनाने का काम पूरा कर चुके हैं | सुबह सात बजे से शुरू हो जाता है उनका अभियान जो देर रात दो बजे तक चलता है | दूसरी और गठ्बन्धन के प्रत्याशी की घोषणा ही बहुत देर से की गई और लगभग एक पखवाड़े के बाद भी उनके प्रत्याशी का कहीं अता पता तक नहीं है औरों की तो बात ही छोडिये अभी तक श्रीमान जी अपनी पार्टी की रीढ़ की हड्डी यानी ब्लाक कमेटियों के अध्यक्षों तक से मिले नहीं है मिलना तो दूर की बात उन्होंने किसी से फोन तक पर बात करना उचित नहीं समझा है |
बात 1998 की है कांग्रस नें शीला दीक्षित को इसी लोकसभा से प्रत्याशी बनाया था उन दिनों हम भी रोहताश नगर ब्लाक अध्यक्ष थे शीला जी नें पहले ही दिन हमसे सम्पर्क किया और अपना परिचय देते हुए लंबी चर्चा की | समझ गए ना आप चुनाव कैसे लड़ा जाता है और उसमे सन्गठन खासतौर से ब्लाक अध्यक्ष की कितनी भूमिका होती है | कन्हैया के रणनीतिकारों की भारी भूल है जे .एन.यू.और लोकसभा के चुनावों में जमीन आसमान का फर्क है सिर्फ डफली बजाकर लोकसभा का चुनाव जीतना तो दूर मुकाबले में भीं नहीं आया जा सकता | जहां तक मनोज तिवारी का सवाल है उनका संगठन जमीन पर है थोड़ी बहुत नाराजगी भी है लेकिन मतदान तक सब सामान्य हो जाती है भाजपा में | यदि ज्यादातर अल्पसंख्यक गठ्बन्धन के पाले में है तो सबसे ज्यादा तादाद वाले ब्राह्मण भी भाजपा के पक्ष में लामबंद माने जा रहे हैं |
हालंकि कन्हैया कुमार भी पूर्वांचली है लेकिन पूर्वांचल के लोग मनोज तिवारी को ज्यादा पसंद करते हैं इसमें कोई दिस दैट की सम्भावना नहीं है | जहां तक गुर्जर मतदाता का सवाल है बड़ी तादाद में अनिल चौधरी को प्रत्याशी नहीं बनाने की सूरत में गठ्बन्धन से नाराज है और वे भी भाजपा के पक्ष में लामबंद होते दिख रहे है | जहां तक दलित मतदाताओं का सवाल है वे गठ्बन्धन,भाजपा और बहुजन समाज पार्टी में बंटने तय है और यदि बसपा नें किसी मुस्लिम या दलित को प्रत्याशी बना दिया तो चुनाव के समीकरण ही पूरी तरह से बदल जायेगें इस सम्भावना से इनकार नहीं किया जा सकता | कन्हैया कुमार को कांग्रेस की समझ रखने वाले कुछ रणनीतिकार बनाने होंगे वरना खेत चुगने के लिए चिड़िया तैयार है और बाद में पछतावे के अलावा कुछ रहने वाला नहीं | आज बस इतना ही …