Delhi: उत्तर पूर्वी दिल्ली में 4 मंजिला ​इमारत ढही, कई लोगों के दबने की आशंका, रेस्क्यू ऑपरेशन जारी

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Delhi: उत्तर पूर्वी दिल्ली में 4 मंजिला ​इमारत ढही, कई लोगों के दबने की आशंका, रेस्क्यू ऑपरेशन जारी

दिल्ली के उत्तर-पूर्वी जिले के मुस्तफाबाद इलाके की शक्ति विहार गली नंबर-1 में शुक्रवार की रात ऐसा मंजर देखने को मिला, जिसे याद करके आज भी रूह कांप जाती है। यह रात न सिर्फ अंधेरे और सन्नाटे की थी, बल्कि वह रात थी जब एक पूरा परिवार, एक मकान और उसकी यादें एक ही पल में मलबे में तब्दील हो गईं। रात के करीब ढाई बजे जब मोहल्ला गहरी नींद में डूबा था, तभी अचानक एक जोरदार धमाके जैसी आवाज ने पूरे इलाके को जगा दिया। चार मंजिला इमारत ताश के पत्तों की तरह भरभराकर ढह गई और 22 जिंदगियां उस मलबे में कैद हो गईं। किसी को भनक तक नहीं थी कि यह नींद उनकी आखिरी नींद बन जाएगी।

इस इमारत का मालिक हाजी तासिन था, जो खुद अपने पूरे परिवार के साथ उसी मकान में रह रहा था। इस घर में तासिन के दो बेटे, उनकी पत्नियां और छह बच्चे भी शामिल थे। तीन-तीन बच्चों के साथ दोनों बहुएं अपने-अपने कमरों में आराम कर रही थीं। बाहर चांदनी रात थी, घर के अंदर सन्नाटा पसरा हुआ था, और शायद किसी ने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि अगली सुबह उनकी जिंदगी हमेशा के लिए बदल जाएगी।

स्थानीय लोगों का कहना है कि इमारत पहले से ही जर्जर स्थिति में थी, लेकिन किसी ने उसकी गंभीरता को नहीं समझा। जब हादसा हुआ तो पूरा मोहल्ला उस डरावनी आवाज से जाग उठा। लोग दौड़कर बाहर आए, लेकिन जो सामने दिखा, वो किसी डरावने सपने से कम नहीं था—इमारत की जगह सिर्फ धूल, धुआं और चीखें थीं।

घटना की सूचना मिलते ही पुलिस और दमकल विभाग को अलर्ट किया गया। लगभग तीन बजे राहत-बचाव टीम मौके पर पहुंची। एनडीआरएफ, दिल्ली फायर सर्विस और पुलिस ने मिलकर मलबे के अंदर फंसे लोगों को निकालना शुरू किया। अंधेरे और मलबे के बीच यह कार्य बेहद चुनौतीपूर्ण था, लेकिन टीम ने पूरी ताकत झोंक दी।

करीब 14 लोगों को मलबे से निकालकर तत्काल जीटीबी अस्पताल पहुंचाया गया। लेकिन अफसोस, इनमें से चार को डॉक्टरों ने मृत घोषित कर दिया। बाकी घायल जिंदगी और मौत के बीच संघर्ष कर रहे हैं। अभी भी मलबे के नीचे 8 से 10 लोगों के दबे होने की आशंका जताई जा रही है और रेस्क्यू ऑपरेशन युद्धस्तर पर जारी है।

हाजी तासिन और उसके परिवार के लिए यह हादसा सब कुछ खत्म कर देने वाला था। एक झटके में उनका घर उजड़ गया, बच्चों की हंसी, मांओं की ममता और बाप की उम्मीदें—all buried under the concrete and steel. तासिन के आंखों में अब सिर्फ खालीपन है, उसके पास न सवाल हैं, न जवाब—बस एक गहरी चुप्पी है जो सब कुछ कह जाती है।

पूरे मोहल्ले में मातम पसरा हुआ है। जो लोग इस परिवार के साथ हर दिन उठते-बैठते थे, वे अब उस जगह की तरफ देखने से भी डरते हैं। लोगों के मन में डर और गुस्से का सैलाब है। ये हादसा सिर्फ एक निर्माण गिरने का नहीं था, बल्कि दिल्ली की उन अनाधिकृत कॉलोनियों की असलियत सामने लाने वाला हादसा था, जहां नियमों की धज्जियां उड़ाकर इमारतें खड़ी की जाती हैं और लोगों की जिंदगी को दांव पर लगा दिया जाता है।

अब सवाल उठ रहे हैं—क्या प्रशासन पहले से सचेत नहीं था? क्या इमारत की स्थिति की जांच कभी हुई थी? क्या लोगों की जान इतनी सस्ती हो गई है कि उन्हें असुरक्षित इमारतों में रहने के लिए मजबूर किया जाए?

रेस्क्यू टीम लगातार मलबा हटाने में जुटी है, लेकिन समय के साथ उम्मीदें भी कमजोर पड़ती जा रही हैं। हर गुजरता पल, मलबे के नीचे दबे जीवन के लिए खतरे की घंटी बन रहा है। लोगों की निगाहें प्रशासन पर हैं, वे दुआ कर रहे हैं कि कोई चमत्कार हो जाए और कुछ और जिंदगियां बच जाएं। लेकिन सच यही है—वो रात, जिसने एक घर उजाड़ दिया, कई सवाल छोड़ गई है… और एक टीस, जो शायद कभी नहीं भरेगी।

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