सुप्रीम कोर्ट ने उपासना स्थल कानून के कुछ प्रावधानों की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए गुरुवार (12 दिसंबर 2024) को एक आदेश जारी किया है. कोर्ट ने आदेश दिया कि जब तक इस मामले पर सुनवाई जारी है, तब तक देशभर में इस कानून के खिलाफ नए मामले दर्ज नहीं किए जा सकेंगे. कोर्ट ने कहा कि इस मामले पर अगली सुनवाई तक किसी भी अदालत में कोई अंतरिम या फाइनल आदेश पारित नहीं किया जाएगा.
सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा कि चूंकि यह मामला पहले से ही उनके समक्ष विचाराधीन है, इसलिए यह जरूरी है कि नए मामलों पर रोक लगाई जाए. इस बीच, केंद्र से हलफनामा दाखिल करने को कहा गया है, ताकि मामले की आगे की सुनवाई में कोई बाधा न आए. कोर्ट ने यह साफ किया कि इसमें सर्वे जैसे आदेश भी शामिल हैं, जिन्हें फिलहाल रोका जाएगा.
याचिकाकर्ता अश्वनी उपाध्याय के वकील राकेश द्विवेदी और अन्य वकीलों ने कोर्ट से अपील की थी कि दोनों पक्षों की सुनवाई के बिना कोई आदेश नहीं दिया जाए. हालांकि, चीफ जस्टिस संजीव खन्ना ने कहा कि कानून की संवैधानिक वैधता और उसकी रूपरेखा पर विश्लेषण किया जा रहा है और इसलिए यह जरूरी था कि देशभर में चल रहे मुकदमों पर रोक लगाई जाए.
देशभर में मस्जिदों से जुड़े कितने मामलों में हो रही है सुनवाई?
वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद और मथुरा में शाही ईदगाह मस्जिद को लेकर मुकदमों को लेकर देशभर में चर्चाएं हैं. लेकिन मस्जिदों को लेकर सिर्फ दो मामले ही नहीं हैं. दरअसल बीते कुछ वक्त में मस्जिदों को लेकर याचिकाओं और दावों की झड़ी लग गई हैं. इन नए मामलों पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का असर पड़ेगा.
जामा मस्जिद और शेख सलीम चिश्ती की दरगाह- फतेहपुर सीकरी, उत्तर प्रदेश
फतेहपुर सीकरी आगरा से 40 किलोमीटर दूर है. यहां सोलहवीं सदी में बनी हुई जामा मस्जिद, जिसके अंदर सूफी संत सलीम चिश्ती की दरगाह भी है. 2024 में अधिवक्ता अजय प्रताप सिंह ने आगरा की एक अदालत में मुकदमा दायर किया था. उनका दावा था कि सलीम चिश्ती की दरगाह कामाख्या देवी के मंदिर पर बनाई गई थी. उनका कहना था कि सोलहवीं सदी में ये दरगाह बनी थी लेकिन उसके पहले वहां एक मंदिर था.
अटाला मस्जिद- जौनपुर, उत्तर प्रदेश
ये भी उत्तर प्रदेश के जौनपुर का मामला है. यहां याचिकाकर्ताओं का दावा है कि अटाला माता के मंदिर को तोड़कर अटाला मस्जिद बनाई गई थी. अटाला मस्जिद 1408 में बनी थी. 2024 में हिंदू संगठन स्वराज वाहिनी ने जौनपुर में एक याचिका में कहा कि फिरोज़ शाह तुगलक ने एक हिंदू मंदिर को तोड़कर ये मस्जिद बनवाई थी.
शम्सी जामा मस्जिद, बदायूं, उत्तर प्रदेश
ये मस्जिद तेरहवीं सदी में दिल्ली सल्तनत के शम्सुद्दीन इल्तुतमिश ने बनवाई थी. 2022 में बदायूं जिला कोर्ट में अखिल भारतीय हिंदू महासभा के संयोजक मुकेश पटेल ने ये याचिका में कहा कि ये मस्जिद की जगह नीलकंठ महादेव का मंदिर हुआ करता था, जिसे हटाकर ये मस्जिद बनाई गई. याचिकाकर्ता की ये मांग है कि उन्हें इस पर पूजा करने की अनुमति दी जाए.
टीले वाली मस्जिद- लखनऊ , उत्तर प्रदेश
ये एक पुराना मामला है जो 2013 से चलता आ रहा है. भगवान शेषनागेश टीलेश्वर महादेव विराजमान के नाम पर तब एक याचिका दायर की गई थी कि मुगल शासक औरंगज़ेब ने एक हिंदू धर्मस्थल को तोड़कर ये मस्जिद बनाई थी.
कमल मौला मस्जिद- धार, मध्य प्रदेश
हिंदू फ्रंट फॉर जस्टिस नाम की एक संस्था ने मध्य प्रदेश हाई कोर्ट में याचिका दायर की है. इसमें ये कहा गया है कि मस्जिद का निर्माण तेरहवी से चौदहवी सदी में अलाउद्दीन खिलजी के शासन में शुरू हुआ था. 2022 की याचिका में मस्जिद में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के सर्वे की माँग की गई.
अजमेर शरीफ दरगाह, राजस्थान
राजस्थान के अजमेर शहर में सूफी संत ख़्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह पर इस साल हिंदू सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष विष्णु गुप्ता ने अजमेर की स्थानीय अदालत में एक याचिका दायर की है. उनका दावा है कि दरगाह के नीचे एक शिव मंदिर है. अपनी याचिका में विष्णु गुप्ता ने वहां पर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण से सर्वे की मांग की है और कहा है कि दरगाह की जगह पर मंदिर फिर से बनना चाहिए.
बाबा बुदनगिरी दरगाह- चिकमंगलूर, कर्नाटक
चिकमंगलूर के बाबा बुदनगिरि में सूफी संत दादा हयात (बाबा बुदन) की एक दरगाह है. इसके साथ ही वहां हिंदुओं का दत्तात्रेय मंदिर भी है. इस जगह को आम तौर पर दक्षिण की अयोध्या भी कहा जाता है. 1970 के दशक में इस जगह को कर्नाटक सरकार ने वक़्फ बोर्ड को दे दिया था.
कुतुबमीनार, दिल्ली
दिल्ली के मशहूर कुतुबमीनार में स्थित कुव्वत-उल इस्लाम मस्जिद पर भी विवाद है. अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन की दायर याचिका में ये कहा गया है कि कई हिंदू मंदिर तोड़कर अंदर मस्जिद बनाई गई थी. उन्होंने वापस वहां हिंदुओं को पूजा करने की अनुमति भी मांगी. 2021 में एक सिविल कोर्ट ने ये कहते हुए इस याचिका को खारिज कर दिया था कि अतीत में की गई गलतियों से वर्तमान और भविष्य की शांति भंग नहीं की जा सकती. लेकिन इस फैसले को चुनौती देते हुए फिर से अपील की गई जो अभी लंबित है.
जुम्मा मस्जिद, मेंगलुरु, कर्नाटक
मेंगलुरु की जुम्मा मस्जिद भी कुछ सालों से विवाद में है. 2022 में कर्नाटक की एक अदालत ने विश्व हिंदू परिषद के एक सदस्य की तरफ़ से दायर की गई याचिका पर कहा था कि वो उपासना स्थल कानून के ख़िलाफ़ नहीं जा सकती. विश्व हिंदू परिषद का ये कहना था कि मस्जिद के नीचे एक मंदिर है और उन्होंने एक सर्वे की मांग की थी. केस अभी मेंगलुरु की ज़िला अदालत में लंबित है.
ज्ञानवापी मस्जिद- वाराणसी, उत्तर प्रदेश
वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद पर 1991 से मुक़दमे चल रहे हैं पर 2021 में एक नए मुक़दमे के बाद मामला तेज़ी से आगे बढ़ रहा है. कई मायनों में सारे लंबित मंदिर-मस्जिद के मामलों में ये केस सबसे आगे बढ़ा हुआ है. इसमें भगवान विश्वेशर के भक्तों ने 1991 में एक केस दायर किया था. फिर 2021 में पांच महिलाओं ने एक और याचिका दायर की, जिसमें उन्होंने मस्जिद में पूजा करने की अनुमति मांगी.
इस केस में दो सर्वे हो चुके हैं- एक कोर्ट की तरफ से और एक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने किया है.
शाही ईदगाह मस्जिद- मथुरा, उत्तर प्रदेश
मथुरा की शाही ईदगाह मस्जिद को लेकर दावा है कि भगवान कृष्ण के जन्मस्थल पर बनाई गई है. 2020 में छह भक्तों ने अधिवक्ता रंजना अग्निहोत्री की तरफ से एक याचिका दायर की, जिसमें उन्होंने मस्जिद को हटाने की मांग की. अब इस मामले में 18 याचिकाएं हैं.
जामा मस्जिद- संभल, उत्तर प्रदेश
अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन ने नवंबर 2024 में एक याचिका में कहा कि जामा मस्जिद भगवान कल्कि के अवतार श्री हरिहर मंदिर को तोड़कर बनाया गया था. इसके बाद कोर्ट ने एक कमिश्नर नियुक्त कर सर्वे करवाया. सर्वे के रिपोर्ट निचली अदालत में जमा हो चुकी है. सुप्रीम कोर्ट में भी इसकी अपील अभी लंबित है. 29 नवंबर की सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सर्वे के बाद की रिपोर्ट को सीलबंद रखा जाए और हाई कोर्ट की अनुमति के बिना इस केस में आगे कुछ नहीं किया जाए.