Raj Thackeray Uddhav Thackeray Meeting: 12 साल बाद मातोश्री पहुंचे राज ठाकरे, उद्धव से मुलाकात ने दिए नए सियासी संकेत
महाराष्ट्र की राजनीति में एक बड़ी हलचल देखने को मिली जब महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) प्रमुख राज ठाकरे 12 साल बाद ‘मातोश्री’ पहुंचे और अपने चचेरे भाई और शिवसेना (उद्धव गुट) प्रमुख उद्धव ठाकरे से मुलाकात की। यह मुलाकात महज एक जन्मदिन की बधाई नहीं मानी जा रही, बल्कि इसे बदलते सियासी समीकरणों का प्रतीक माना जा रहा है, जिसने महाराष्ट्र की राजनीति में हलचल मचा दी है।
भाईचारे से आगे बढ़ती रणनीति?
राज ठाकरे की यह मुलाकात इसलिए भी अहम मानी जा रही है क्योंकि 2012 के बाद से उन्होंने कभी मातोश्री का रुख नहीं किया था। पारिवारिक तनाव, राजनीतिक मतभेद और शिवसेना से अलग होकर एमएनएस की स्थापना के बाद राज और उद्धव के बीच खाई बढ़ती गई थी। लेकिन अब, जब भाषा विवाद ने दोनों नेताओं को एक मंच पर ला दिया है, तो यह सवाल उठ रहा है – क्या महाराष्ट्र की राजनीति में ‘ठाकरे बनाम ठाकरे’ का दौर खत्म हो रहा है?
हाल ही में एक सरकारी प्रस्ताव के तहत हिंदी को महाराष्ट्र के स्कूलों में तीसरी भाषा के रूप में लागू करने की कोशिश की गई, जिसका राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे दोनों ने तीखा विरोध किया। इस विरोध के दौरान ही दोनों भाइयों की नजदीकियां बढ़ीं, जिसने राजनीतिक रूप से नई संभावनाओं के द्वार खोल दिए हैं।
गठबंधन की आहट या रणनीतिक मुलाकात?
BMC चुनाव नजदीक हैं और शिवसेना (उद्धव गुट) के लिए यह चुनाव अस्तित्व की लड़ाई बन चुका है। वहीं एमएनएस का प्रदर्शन पिछले कई चुनावों से बेहद निराशाजनक रहा है। ऐसे में बीजेपी और शिंदे गुट को टक्कर देने के लिए ठाकरे भाइयों का साथ आना एक व्यावहारिक रणनीति हो सकती है। इस दिशा में पहला संकेत विजय रैली के दौरान मिला, जब दोनों भाई एक ही मंच पर नजर आए। अब मातोश्री जाकर जन्मदिन की बधाई देना शायद उस रिश्ते को सार्वजनिक रूप से फिर से जीवंत करने का प्रयास है।
मराठी अस्मिता की फिर गूंज
भाषा विवाद ने ठाकरे भाइयों को मराठी अस्मिता के मुद्दे पर एक बार फिर एकजुट कर दिया है। महाराष्ट्र में मराठी भाषा और संस्कृति की रक्षा की पुरानी विरासत को दोनों नेता अब एकजुट होकर भुनाने की कोशिश कर रहे हैं। इस मुद्दे पर सरकार को पीछे हटना पड़ा और एक कमेटी गठित करनी पड़ी। यह ठाकरे भाइयों की पहली सियासी जीत मानी जा रही है, जिसने उन्हें एक नया आत्मविश्वास दिया है।
लेकिन गठबंधन में हैं अड़चनें भी
राज ठाकरे की छवि को लेकर महा विकास अघाड़ी (MVA) के भीतर मतभेद हैं। उनके पुराने बयान, खासकर मुस्लिम समुदाय के खिलाफ दिए गए भाषण, उन्हें महागठबंधन की राजनीति में पूरी तरह स्वीकार्य नहीं बनाते। यदि एमएनएस को उद्धव गुट का साथ मिलता है, तो मुस्लिम वोट बैंक में नाराजगी की आशंका है। यही कारण है कि अब तक इस संभावित गठबंधन की औपचारिक घोषणा नहीं हुई है।
क्या बिखर सकता है मराठी वोट?
राज ठाकरे का इस तरह अचानक मातोश्री पहुंचना सिर्फ भाईचारे का इज़हार नहीं, बल्कि चुनाव से पहले एक बड़ा राजनीतिक संकेत हो सकता है। अगर यह मुलाकात दोनों दलों को एकजुट करने का मार्ग प्रशस्त करती है, तो महाराष्ट्र में मराठी वोटरों का ध्रुवीकरण भी हो सकता है। वहीं मुस्लिम वोटर्स की नाराजगी एमवीए को नुकसान पहुंचा सकती है। यानी एक समीकरण सधता है तो दूसरा बिगड़ सकता है।
नजरें अब अगले कदम पर
राज ठाकरे की इस मुलाकात ने राजनीतिक हलकों में चर्चा तेज कर दी है। क्या यह महज एक सौजन्य भेंट थी या आगामी गठबंधन की नींव? क्या ठाकरे ब्रदर्स एक बार फिर एकजुट होकर महाराष्ट्र की राजनीति को नई दिशा देंगे? इन सवालों का जवाब आने वाले हफ्तों में साफ हो जाएगा, लेकिन इतना तय है कि इस मुलाकात ने महाराष्ट्र के सियासी परिदृश्य में हलचल जरूर पैदा कर दी है।



