हसदेव अरण्य में खनन योजना से आदिवासियों के उजड़ने का खतरा

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हसदेव अरण्य में खनन योजना से आदिवासियों के उजड़ने का खतरा
हसदेव अरण्य में खनन योजना से आदिवासियों के उजड़ने का खतरा

हसदेव अरण्य का मामला एक ओर देश में कोयले की बढ़ती जरूरत से जुड़ा है तो दूसरी ओर पर्यावरण संरक्षण और लाखों आदिवासियों की जीविका से भी.देश के सबसे घने जंगलों में एक छत्तीसगढ़ के हसदेव अरण्य में माइनिंग के लिये पेड़ काटे जाने पर विवाद बढ़ता ही जा रहा है आदिवासियों के प्रतिरोध और धरने के कारण पिछले हफ्ते यहां पेड़ काटने का काम रोक दिया गया लेकिन ग्रामीणों को डर है कि यह कभी भी दोबारा शुरू हो सकता है इस बीच नेशनल टाइगर कंजरवेशन अथॉरिटी (एनटीसीए) ने शुक्रवार को राज्य सरकार को नोटिस जारी कर इस बारे में तथ्यात्मक रिपोर्ट मांगी है।

सामाजिक कार्यकर्ताओं का अनुमान है कि कटने वाले पेड़ों की असल संख्या दो लाख से अधिक

हसदेव के लिये लड़ रहे आदिवासियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं के संगठन छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन ने शिकायत की थी कि राज्य सरकार ने पेड़ काटने से पहले एनटीसीए और नेशनल बोर्ड फॉर वाइल्ड लाइफ को सूचित नहीं किया. महत्वपूर्ण है कि इस प्रोजेक्ट के लिए सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, हसदेव अरण्य के परसा कोल ब्लॉक में 95,000 पेड़ कटेंगे. हालांकि सामाजिक कार्यकर्ताओं का अनुमान है कि कटने वाले पेड़ों की असल संख्या दो लाख से अधिक होगी राजस्थान सरकार को चाहिये माइनिंग हसदेव अरण्य छत्तीसगढ़ में बीस से अधिक कोल ब्लॉक्स में माइनिंग का प्रस्ताव है।

राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड ने अडानी ग्रुप से अनुबंध

यहां से राजस्थान सरकार पहले ही परसा ईस्ट केते बसान (पीईकेबी) खदान से कोयला निकाल रही है राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड ने अडानी ग्रुप से अनुबंध किया है जो कि इन खानों का डेवलपर और ऑपरेटर (एमडीओ) है हसदेव के जंगल में बाघों और हाथियों का बसेरा है और यह जैव विविधता से भरपूर है।

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