Panchayat Season 2 Review: गांव की टूटी सड़कों से बुनियादी जरूरतों और समस्‍याओं को याद दिलाती है पंचायत 2

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Panchayat Season 2 Review: गांव की टूटी सड़कों से बुनियादी जरूरतों और समस्‍याओं को याद दिलाती है पंचायत 2
Panchayat Season 2 Review: गांव की टूटी सड़कों से बुनियादी जरूरतों और समस्‍याओं को याद दिलाती है पंचायत 2

Panchayat Season 2 Review: गांव की टूटी सड़कों से बुनियादी जरूरतों और समस्‍याओं को याद दिलाती है पंचायत 2

फव्‍वारे और श‍िवलिंग ढूंढ़ने के कोलाहल में हम उन मुद्दों को भूलते जा रहे हैं जो सच में वाजिब हैं। ग्‍लोबल मंच पर खुद को सुपरपावर कहलवाना और तालियां बटोरना तो ठीक है। लेकिन सड़क से लेकर खुले में शौच तक जैसी बुनियादी जरूरतों और समस्‍याओं का क्‍या? कभी गांवी की टूटी सड़कों से होते हुए धूल फांकते फुलेरा जैसे गांव भी पहुंच‍िए। यकीन मानिए जिंदगी मंदिर-मस्‍ज‍िद की बुनियाद साबित करने का शोर नहीं, बरगद के पेड़ के नीचे की शांत और ठंडी हवा है। यह सीरीज आपको हंसाती है। चुपके से वो बातें कह जाती हैं, जिन पर सोचना जरूरी है।

फुलेरा गांव का सचिव अभ‍िषेक त्रिपाठी कोई एक किरदार नहीं है

फुलेरा गांव का सचिव अभ‍िषेक त्रिपाठी कोई एक किरदार नहीं है, यह देश के उन युवाओं की भी कहानी है, जो कॉरपॉरेट कल्‍चर में लाखों-करोड़ों के पैकेज की चाहत में शहर की ओर भागना चाहते हैं, और शहर में बसने वाले सिद्धार्थ जैसे युवा चिल्‍ल करने के लिए गांव आते हैं। ‘पंचायत 2’ की कहानी रस्‍सी के उसी सिरे से शुरू होती है, जहां गांठ बांधकर 2020 में ‘पंचायत सीजन-1’ खत्‍म हुई थी।

फुलेरा के सचिव अभ‍िषेक त्रिपाठी को आज भी गांव से दूर जाना है

फुलेरा के सचिव अभ‍िषेक त्रिपाठी को आज भी गांव से दूर जाना है। उसने खुद को एक साल का वक्‍त दे रखा है। वह कैट की तैयारी भी कर रहे हैं और सचिव के तौर पर अपनी जिम्‍मेदारी भी निभा रहे हैं। गांव की प्रधान मंजू देवी के परिवार से अपनेपन का रिश्‍ता है। प्रधान के पति और असल मायने में प्रधानी कर रहे बृज भूषण दुबे, उप प्रधान प्रह्लाद पांडे और दफ्तर में असिस्‍टेंट विकास से अभ‍िषेक की अब पक्‍की वाली दोस्‍ती है। अभ‍िषेक को शहर तो जाना है, लेकिन गांव में रहना अब पहले सीजन की तरह उसके लिए टास्‍क नहीं है। एक कंफर्ट आ गया है। आगे गांव की समस्‍याएं हैं।

सड़क है, बिजली है, सीसीटीवी है, खुले में शौच की बात है

सड़क है, बिजली है, सीसीटीवी है, खुले में शौच की बात है। इन सब से जूझते सचिव जी हैं। प्रधान जी की प्रधानी को टक्‍कर देने के लिए भूषण और क्रांति देवी हैं। एक बड़बोले दबंग विधायक जी भी है। एक बेटा है जो फौज में है। एक नाचने वाली भी है, जो जाते-जाते जीवन का सार दे जाती है कि एक तरह से हम सब कहीं ना कहीं नाच ही रहे हैं। एक पिता है, जिसकी जिंदगी टूटकर बिखर गई है। वो जब समाज में निकलेंगे तो सर ऊंचा रहेगा, खूब इज्‍जत मिलेगी। लेकिन घर लौटेंगे तो अकेलेपन के सिवाय कुछ नहीं होगा। वो भी उम्रभर के लिए।

‘पंयाचत सीजन- 2’ में चंदन कुमार की कहानी और दीपक कुमार मिश्रा के डायरेक्‍शन को आप देखना शुरू करते हैं, और देखते ही देखते आठ एपिसोड कब खत्‍म हो जाते हैं, पता नहीं चलता। सादगी और साफगोई से कहानी कहने और उसे पर्दे पर दिखाने की यह कला उन ऐक्‍टर्स और डायरेक्‍टर्स को भी देखनी चाहिए, जो इन दिनों हिंदी बनाम साउथ की बेवजह की बहस में जुटे हुए हैं।

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