अरविंद केजरीवाल के ब्रह्मास्त्र से भाजपा हुई चारों खाने चित्त
* काट तलाशने में जुटी भाजपा की टीम
– अश्वनी भारद्वाज –
नई दिल्ली ,जेल से लौटते ही मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने बे मौसमी इस्तीफा देने की घोषणा करके दिल्ली की सियासत में भूचाल ला दिया है | बे-मौसमी हमने इसलिए लिखा जब उनपर इस्तीफ़ा देने का चौतरफा मौसम बन चुका था , तमाम विपक्षी दल नैतिकता की दुहाई देते हुए उनसे इस्तीफ़ा मांग रहे थे तब उन्होंने इस्तीफ़ा नहीं दिया |
लेकिन जेल से लौटने के दो दिन बाद इस्तीफ़ा देने के अपने प्लान का एलान कर दिया | अब चर्चा कर लेते हैं उस वक्त अरविन्द केजरीवाल नें इस्तीफ़ा क्यों नहीं दिया क्योंकि वे किसी के दबाव में इस्तीफे का एलान नहीं करना चाहते थे | उन्हें पता था कानून उनके पद पर बने रहने में बाधक नहीं है | वे यह संदेश भी नहीं देना चाहते थे कि भ्रस्टाचार के आरोपों के चलते वे ईस्तीफा दे रहे हैं |
उन्हें यह भी आभास था देर सवेर कोर्ट उनकी गिरफ्तारी पर जांच एजेंसियोँ को कटघरे में अवश्य खड़ा करेंगी | दूसरे उनके जेल में रहते हुए उनके उत्तराधिकारी का चयन भी आसान काम नहीं था | सबसे अहम यह भी था कि जेल में भी प्रोटोकाल पर ना केवल फर्क पड़ता अपितु वकील की फीस सहित तमाम खर्च भी उनके खुद के जिम्मे पड़ते | समझ गए ना आप क्यों नहीं दिया ईस्तीफा जेल में रहते हुए अरविन्द नें | चर्चा में रहना अरविन्द को शायद देश में सबसे ज्यादा आता है |
हम लगातार कहते रहे हैं भाजपा के पास उनकी टक्कर का एक भी नेता दिल्ली में नहीं है | इस एलान नें यह साबित भी कर दिया कि सियासत की शतरंज में कम से कम दिल्ली में तो उनकी टक्कर में कोई दूर दूर तक नहीं है | केजरीवाल नें महाराष्ट्र के साथ नवम्बर में चुनाव की मांग कर एक तीर से कई शिकार कर दिए | एक तो यह कि भाजपा अब विधानसभा चुनाव के लिए देर करती है तो जनता के दरबार में ठीकरा भाजपा पर ही फूटेगा | और उनकी मांग मान ली जाती है तो चुनाव तक केजरीवाल जनता के बीच रहेगें और माहौल बनाते रहेगें |
शायद इसीलिए उन्होंने कहा जनता उन्हें क्लीन चिट देगी तभी वे सी.एम.पद दुबारा से लेंगें यानी भाजपा के 26 साल के बाद सत्ता के सपने एक बार फिर चकनाचूर | और यदि विधानसभा को तत्काल भंग करने की योजना बनती है तो भी जनता की सहानुभूति केजरीवाल के साथ जाने से कोई नहीं रोक सकता | समझ गए ना आप दोनों हाथों में लड्डू है केजरीवाल के | कोर्ट के आदेशानुसार अरविन्द ना तो आफिस जा सकते थे और ना ही किसी फाइल पर हस्ताक्षर कर सकते थे लिहाजा उन्हें कागजी और मजबूर मुख्यमंत्री का तमगा भी पसंद नहीं आ रहा था |
अब जब नया मुख्यमंत्री स्वभाविक है उनकी मर्जी से ही बनेगा तो इन तमाम झंझटों से उन्हें मुक्ति भी मिल जायेगी और सभी कार्य भी उनकी सहमति ही होंगे | यानी सापं भी मर जाएगा और लाठी भी नहीं टूटेगी ,मुख्यमंत्री कौन बनेगा यह ज्यादा बड़ा इश्यू नहीं है लेकिन सरकार अरविन्द केजरीवाल ही चलायेगें दिल्ली भी देखेगी और देश भी | आज बस इतना ही …