
ट्रिपल इंजन की सरकार के साथ-साथ ट्रिपल हार भी चर्चा का विषय
आखिर कौन लेगा हार की नैतिक जिम्मेदारी
– अश्वनी भारद्वाज –
नई दिल्ली ,डबल इंजन की सरकार की बात तो आपने प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी की रैलियों में खूब सुनी होगी और ट्रिपल इंजन की सरकार भी आपने सुनी होगी, यदी नहीं सुनी तो अप्रैल में सुन लेना राजधानी दिल्ली में बनने जा रही है ट्रिपल इंजन की सरकार | यानी केंद्र ,तथा दिल्ली में तो डबल इंजन की सरकार बन ही चुकी है और दिल्ली नगर निगम में भी यह बनने की सम्भावना से इंकार नहीं किया जा सकता | लेकिन आजकल दिल्ली की सियासत में ट्रिपल जीरो की हार की भी उतनी ही चर्चा है जितनी ट्रिपल इंजन की सरकार की | अब तो आप समझ ही गए होंगे ट्रिपल इंजन की सरकार का मतलब भारतीय जनता पार्टी तो ट्रिपल जीरो की हार का मतलब कांग्रेस |
आपको याद दिला दें कांग्रेस लगातार तीन विधानसभा चुनावों में एक भी सीट पर जीत दर्ज नहीं कर सकी है यानी ट्रिपल जीरो, दूसरे शब्दों में शर्मनाक हार की हैट्रिक | पिछले विधानसभा चुनाव में हुई पार्टी की हार की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए उस वक्त के प्रदेश अध्यक्ष सुभाष चोपड़ा नें ईस्तीफा दिया था तो उससे पहले मिली हार के बाद अरविन्द्र सिंह लवली नें यह काम किया था | लेकिन जितनी शर्मनाक हार इस बार हुई है शायद पहले भी नहीं हुई | आपको याद दिला दें इस बार केवल तीन प्रत्याशी ही अपनी जमानत बचाने में सफल हुए है जबकि केवल एक प्रत्याशी दूसरे स्थान पर रहा है बाकी सभी तीसरे तो कुछ चौथे नम्बर पर भी रहे हैं | खुद प्रदेश अध्यक्ष देवेन्द्र यादव भी तीसरे स्थान पर ही रहे | इससे पहले भी चुनाव में हार के बाद नैतिक जिम्मेदारी शब्द का पालन एक दो बार नहीं बल्कि अनेकों बार हुआ है |
जहां तक हमें याद है स्व.एच.के.एल.भगत ,दीप चंद बन्धु ,अनिल चौधरी जैसे दिग्गज भी नैतिकता के आधार पर इस्तीफा दे चुके है | दीप चन्द बन्धु नें तो मतगणना के दौरान ही पार्टी की हार को देखते हुए इस्तीफ़ा दे दिया था | और तो और कांग्रेस सुप्रिमो राहुल गांधी नें खुद पिछले लोकसभा चुनावों में हार की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए पद छोड़ दिया था | वहीं दूसरी ओर दिल्ली विधानसभा चुनाव के इतने दिन बाद यहाँ तक कि सरकार बनने के बाद भी विधानसभा चुनाव में मिली हार की नैतिक जिम्मेदारी कांग्रेस में हमारी जानकारी के मुताबिक तो अभी तक किसी नें ली नहीं है | यह चर्चा दिल्ली की सियासत में बड़ी तेजी के साथ चल रही है | हम यह बिलकुल नहीं कह रहे किस को हटना चाहिए और किस को बनना चाहिए लेकिन कांग्रेस की परम्परा को ध्यान में रखते हुए प्रभारी महासचिव ,प्रभारी सचिव के साथ-साथ प्रदेश अध्यक्ष को कम से कम नैतिक जिम्मेदारी का पालन तो करना ही चाहिए | इतना ही नहीं चर्चा तो यहाँ तक भी है जिस महान व्यक्ति नें ये महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां तमाम परम्पराओं को ताक पर रखते हुए सौंपी थी जवाबदेही तो उनकी भी बनती हैं | इस्तीफ़ा दें या नहीं दें क्योंकि यह पार्टी का इंटरनल मामला है लेकिन नैतिकता तो सबके लिए ही समान जिम्मेदारी बनती है | आज बस इतना ही …