3D तकनीक का इस्तेमाल कर कृत्रिम अंग बनाने में जुटा AIIMS, दिव्यांगों को होंगे ये फायदे
एम्स ने दिव्यांगों के लिए कृत्रिम अंग बनाने के प्रयास शुरू कर दिए हैं. इसका लाभ दुर्घटना या किसी भी प्रकार के हादसे के कारण अपने शरीर के अंग खोने वाले दिव्यांग उठा सकेंगे.
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) दिल्ली ने दुर्घटना और अन्य कारणों से क्षतिग्रस्त हुए मरीजों के अंगों को पूर्व की भांति सक्षम बनाने की दिशा में एक अहम पहल करते हुए मरीजों के लिए थ्रीडी तकनीक से इम्प्लांट्स बनाने की दिशा में पहल की शुरुआत की थी. जिससे सर्जिकल इलाज के लिए एम्स आने वाले मरीजों को काफी फायदा मिलने की उम्मीद जताई जा रही है. वहीं अब एम्स प्रशासन ने इस दिशा में एक और कदम आगे बढ़ाते हुए दिव्यांगों के लिए कृत्रिम अंग बनाने के प्रयास शुरू कर दिए हैं.
कृत्रिम अंगों के विकास के लिए थ्रीडी कार्विंग मशीन और CAD-CAM थ्रीडी स्कैनर की मदद ली जाएगी, जिनका लाभ रेल, सड़क एवं अन्य दुर्घटना या किसी भी प्रकार के हादसे के कारण अपने शरीर के अंग खोने वाले दिव्यांग उठा सकेंगे. इस संबंध में एम्स दिल्ली के ट्रॉमा सेंटर के क्रिटिकल केयर डिवीजन की प्रोफेसर डॉ सुषमा सागर ने बताया कि थ्रीडी तकनीक के जरिए कृत्रिम अंग बनाने के लिए जिस प्रकार की ट्रेनिंग की आवश्यकता है, उसका पहला चरण शुरू हो गया है. अगले चरण में प्रोटोटाइप बनाने की प्रक्रिया को अंजाम दिया जाएगा. कृत्रिम अंग का सबसे आम प्रकार घुटने के नीचे का कृत्रिम अंग है, जो सभी कृत्रिम अंगों का लगभग 70 प्रतिशत है.
अंग तुरंत मुहैया कराया जा सकेगा
डॉ सुषमा सागर ने कहा, यदि दिव्यांगों को अंग विच्छेदन के 24 घंटे के भीतर कृत्रिम अंग मिल जाता है तो वह अपने रोजमर्रा के कार्यों को आसानी से कर पाते हैं. वहीं, जब कृत्रिम अंग निर्माता कंपनी कुछ समय के अंतराल के बाद पीड़ित व्यक्ति को अंग उपलब्ध कराती है तब शरीर सामंजस्य बिठाने में लंबा वक्त लगा देता है. इस दौरान पीड़ित को काफी परेशानी झेलनी पड़ती है. लेकिन अब थ्रीडी तकनीक से विकसित अंग तुरंत ही पीड़ित व्यक्ति को मुहैया कराया जा सकेगा.
दिव्यांग कर सकेंगे पहेल जैसे काम
डॉ सागर के मुताबिक थ्रीडी तकनीक से ट्रांसस्टिबियल, ट्रांसफेमोरल, कैनियल ऑर्थोटिक्स, स्पाइन स्पाइनल ऑर्थोटिक्स, हाथ, टखने और पैर के ऑर्थोसेस सहित ऑथेंटिक प्रोफाइल की पूरी श्रृंखला तैयार की जा सकती है. उन्होंने कहा कि आज, प्रौद्योगिकी, सामग्री और डिजाइन में प्रगति के कारण कृत्रिम उपकरण न सिर्फ बदल गए हैं बल्कि विकलांग व्यक्ति को खाने-पीने, चलने फिरने और खुद कपड़े पहनने में सक्षम भी बना रहे हैं. कृत्रिम अंग की सहायता से दिव्यांग अब लगभग वह सब कुछ कर सकते हैं, जो वह अपना अंग खोने से पहले कर सकते थे.