केजरीवाल के एक दर्जन विधायक पाला बदल जाना चाहते हैं भाजपा में, भाजपा सबको लेने के मूड में नहीं
– अश्वनी भारद्वाज –
नई दिल्ली | राजधानी दिल्ली के बदलते घटनाक्रम के तहत सियासत अपनी चरम पर है। इधर से उधर पल्टी मारने का खेल जारी है। या यूँ कहिये जिसे अपनी पार्टी में अपना भविष्य अंधकार में दिख रहा है वह अपना नया आशियाना तलाश रहा है। और इसकी शुरुआत किसी और नें नहीं बल्कि खुद को दिल्ली की सियासत का चाणक्य समझने वाले अरविंद केजरीवाल नें ही की है। यानी उन्होंने ही जो रास्ता दूसरी पार्टी के नेताओं को दिखाया अब उनके लिए भी मुसीबत पैदा करने वाला बनने वाला है। अरविन्द को यह समझ लेना चाहिए यह दिल्ली है जो लम्बे समय तक किसी की गुलामी नहीं करती। हमने पहले भी इसी कालम में जिक्र किया था तीन टर्म के बाद इसी दिल्ली नें दिल्ली की विकास गाथा लिखने वाली शीला दीक्षित और दिल्ली के बेताज बादशाह कहे जाने वाले एच.के.एल.भगत को चुनाव हरा दिया था और आपको याद रखना चाहिए टर्म आपका भी तीसरा है। हम यह नहीं कह रहे अरविन्द चुनाव हारने जा रहे है लेकिन इतना जरुर कहना चाहते है अरविन्द अपना चुनाव भले ही जीत जायेगें लेकिन उन्होंने जो बिसात बिछाई है से उनकी राह में खुद कांटें बिछने लगे है। समझ गए ना दिल्ली इस बार बदलाव की राह पर चलती दिख रही है। और इसके लिए खुद अरविन्द तथा उनकी नीतियां जिम्मेदार हैं इस सम्भावना से इंकार नहीं किया जा सकता। अरविन्द नें जिन लोगो की टिकिट काटी है या जिन्हें काटने जा रहे है वे कोई साधारण व्यक्ति नहीं है अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने भी अपना जनाधार बनाया है। वे अरविन्द की पार्टी का कितना नुकसान करेगें यह तो चुनाव परिणाम के बाद ही सामने आएगा। और उनके स्थान पर जिन्हें प्रत्याशी बनाया गया है यदि वे इतने ही जमीनी होते तो उन्हें लगातर इन्ही चेहरों से हार का सामना क्यों पड़ा। यह हमारे सोचने का विषय नहीं है लेकिन अरविन्द की पार्टी के दो बड़े नेता और करीब एक दर्जन विधायक भाजपा का दामन थामने का मन लगभग बना चुके है। इन्तजार है तो केवल भाजपा के ईशारे की। भाजपा को इन्हें अपने पाले में लेने में केवल एक ही दिक्कत है कि भाजपा दो तीन के अलावा इन सभी को चुनावी समर में नहीं उतारना चाहती भाजपा को पहले से ही टीम लवली के लवलियों को एडजस्ट करने में दिक्कत आ रही है। जिन मुफ्त की रेवड़ियों को मुद्दा बना अरविन्द चुनाव जीतना चाहते हैं वे रेवड़ियाँ अब गज्जक का रूप ले चुकी है भाजपा और कांग्रेस भी उन्हें अपने एजेंडे में शामिल कर चुकी हैं। आज बस इतना ही।