प्रो.भारद्वाज द्वारा रचित उपन्यासों में दिया जाता है नारी को महत्व
* नारी सरोकार और नारी सशक्तिकरण रहते हैं प्रमुख मुद्दे
– हर्ष भारद्वाज –
नई दिल्ली ,डॉ भारद्वाज का साहित्य नारी केंद्रित है. उनके उपन्यासों या कहानियाँ में नारी सरोकार और नारी सशक्तिकरण प्रमुख मुद्दे है. उनके उपन्यास पढ़ कर प्रथम दृष्टया हमें ऐसा लगा जैसे वे पुरुष विरोधी हों और सीमा से बाहर जाकर स्त्री का समर्थन कर रहे हों. मगर डॉ भारद्वाज जिन मुद्दों को अपने उपन्यासों में उठाते हैं, उनको देख और पढ़ कर हमें अपनी राय बदलनी पड़ी क्योंकि परित्यक्ताओं और विधवाओं से लेकर बलात्कार पीड़िताओं और गणिकाओं के दर्द को वे मुखर आवाज़ देते है और उनको प्राकृतिक न्याय दिलाते है. हमें अपनी राय इसलिए भी बदलनी पड़ी क्योंकि पुरुष पात्र ही ये साबित करते हैं कि पीड़ित स्त्री को न्याय देने और दिलवाने में वे किसी से पीछे नहीं.

उपन्यास इश्क-ए-जिंदगी के केन्द्र में एक नवयुवती है जो पति के गुजर जाने के बाद अपने जेठ की हवस से न केवल अपने आपको बचाती है बल्कि आत्मनिर्भर होकर एक भटके हुए नौजवान को अपनी माँ और पत्नि के पास लौट जाने को तैयार कर देती है. यही नहीं, एक गणिका को देह बाज़ार से मुक्त करा कर उसका घर बसवाती है जिसमें भटके हुए नौजवान की प्रमुख भूमिका होती है.
कोरोना महामारी के दौरान यतीम हुए बच्चे खास कर लड़कियाँ लेखक की सूक्ष्म नज़र में रहती है और उन्होंने उसकी नजीर, ‘चुप कर अभी नहीं’ में पेश की है. सहपाठी बच्चों के माता पिता कोरोना की भेंट चढ़ जाते हैं और शोषकों से बचते बचाते वे बच्चे अपनी जिंदगी कैसे बनाते हैं, इस उपन्यास के केन्द्र बिंदु है. ‘पार्श्वांग्न में प्रणय उपवन’ नायिका सौम्या की वो करूँण गाथा है जो प्रमाणित करती है कि नारी जो चाहती है, वह उसे संसार से मिलता नहीं और जो संसार उसे देने को तत्पर रहता है, वह नारी को स्वीकार नहीं. ‘नहीं, नहीं, अब और अहिल्या नहीं’ में एक दिवायंग वकील जो बाद में न्यायधीश बनता है, बलात्कार पीड़िताओं को लीक से हट कर न्याय देता है तो ‘1947, कुछ कही, कुछ अनकही’ में विभाजन के दौरान हुए दंगों में यतीम हुई दो लड़कियों की करूँण दास्तान है जो संघर्ष करते हुए अपने आपको स्थापित करती हैं.
उपन्यास ‘शाश्वत प्रेम’ भोग से भक्ति की अवधारणा को पुख्ता करता है तो ‘तितली पुनर्जीवित हो उठी’ में मोहब्बत में धोखा खाई युवती स्नेह और सद्भावना की मूर्ति कैसे बन जाती है, देखना दिलचस्प है. प्रेम और वासना में अंतर दर्शाता यह उपन्यास पुनर्जन्म और पुनर्मिलन की धारणाओं पर रोचक चिंतन मनन करता है. ‘तहजीब रक्षक कोठेवालियाँ’ और ‘राह से भटकता पुरुष नारी विमर्श’ अनुपम रचनाएँ है जो नारी की शक्तियों और क्षीणताओं पर चिंतन मनन करती है. डॉ भारद्वाज अपने उपन्यासों में मनश्चेतन प्रवाह शैली और चिंतन मनन पद्यति का प्रयोग करते हैं जो पात्रों के मनोविज्ञान को पारदर्शी बनाते है |


