जमीन से जुड़े दिल्ली के प्रभावशाली नेता रहे विजय कुमार मल्होत्रा जो उनसे मिल लेता था उन्ही का हो जाता था – अश्वनी भारद्वाज

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विजय कुमार मल्होत्रा
जमीन से जुड़े दिल्ली के प्रभावशाली नेता रहे विजय कुमार मल्होत्रा जो उनसे मिल लेता था उन्ही का हो जाता था - अश्वनी भारद्वाज

जमीन से जुड़े दिल्ली के प्रभावशाली नेता रहे विजय कुमार मल्होत्रा जो उनसे मिल लेता था उन्ही का हो जाता था – अश्वनी भारद्वाज

– नई दिल्ली ,विजय कुमार मल्होत्रा यानी विजय जी भारतीय जनता पार्टी के संस्थापकों में से एक बड़े स्तम्भ थे खासतौर से दिल्ली भजपा की सियासत लम्बे समय तक उनके इर्दगिर्द घूमती रही | अस्सी के दशक में दिल्ली की सियासत में उनकी तूती बोलती थी विजय जी केदारनाथ साहनी जी और मदनलाल खुराना जी की तिकड़ी बेजोड़ थी उनकी बिना मर्जी के दिल्ली की सियासत में पत्ता भी नहीं हिलता था |

भाजपा तो क्या कांग्रेस के दिग्गज भी इस तिकड़ी की अहमियत सियासत में समझते थे | स्व.एच.के.एल.भगत रहे हों या जगदीश टाइटलर कोई भी रणनीति बनाने से पहले इनकी गतिविधियों का अध्ययन करना जरूरी समझते थे | समझ गए ना आप कितनी मजबूत थी यह तिकड़ी और कितनी कारगार होती थी इनकी रणनीति | भाजपा हाईकमान में उन दिनों अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी का बोलबाला था वे दोनों दिग्गज भी इस तिकड़ी से बिना सलाह मशविरे के दिल्ली का कोई भी निर्णय नहीं लेते थे |

विजय कुमार मल्होत्रा और लालकृष्ण आडवाणी तो लम्बे समय तक पंडारा रोड पर एक ही बंगले के दो हिस्सों में रहते थे ,जिसमें कोई दीवार भी नहीं थी | हमारे भी विजय कुमार मल्होत्रा से बेहद करीबी सम्बन्ध रहे है | हमारी मुलाकत उनसे 1983 में उस वक्त हुई जब हम सत्यवती कालेज छात्र संघ के अध्यक्ष और डूसू में कार्यकारी पार्षद हुआ करते | हमारे सीनियर गुलशन कुमार नें विजय जी को कालेज उत्सव में बतौर चीफ गेस्ट बुलाया था बस उसी दिन से विजय जी हमारे हो गए थे और यदा कदा फोन कर लिया करते | उन्हें छात्र राजनीती बेहद पसंद थी वे अक्सर छात्र संघ अध्यक्षों को चाय पर बुलाया करते | धीरे धीरे हमारे उनसे नजदीकी सम्बन्ध हो गए हमें उनकी मिलनसार नीति मन भाती थी इतने बड़े कद के नेता कई बार हमसे मिलने खुद कालेज पहुंच जाते थे और हम फूल कर कुप्पा हो जाते थे | जब हम दूसरी बार भी कालेज छात्र संघ के अध्यक्ष बने और उसके बाद डूसू में रिकार्ड मतों से जीते तो विजय जी खुद बधाई देने हमारे घर आ गए थे | और एक तरह से उनसे हमारा घरेलू रिश्ता बन गया था |

मुझे आज भी याद है विजय जी जब लोकसभा का चुनाव लड़े तो उन्होंने हमें फोन करके बुलाया और कहने लगे हमारी मदद करो आपके बहुत से छात्र दोस्त यहाँ रहते होंगे ,उस वक्त वे अपने कार्यकर्ताओं पर गुस्सा हो रहे थे उनकी वोटिंग स्लिप तैयार नहीं थी, और चुनाव में समय बहुत कम था | विजय जी नें कहा आप इअमें हमारी सहायता कीजिये ,हमने कहा चिंता नहीं करें हम आपका काम आसान कर देते हैं हमने एक गाडी में उनकी सभी स्लिप और वोटर लिस्ट ले ली और अपने कालेज पहुंचकर सभी कक्षाओं में छात्र छात्राओं में स्लिप और वोटर लिस्ट दे दी जो शाम तक बनकर तैयार भी हो गई ,उन दिनों स्लिप हाथ से ही भरी जाती थी |

फिर क्या था उसी दिन से विजय जी हमें बहुत अधिक मानने लगे | एक बार हमें डूसू चुनाव लड़ने के लिए री एडमिशन लेना था जो की आसान काम नहीं था अध्यक्ष रहते हुए हमने विजय के कहने पर अनेक दाखिले कालेजों में कराए थे विजय जी खुद पी.जी.डी.ए.वी.कालेज में प्रोफेसर थे वे कहा करते हमसे वहां जितने मर्जी दाखिले करा लेना | हम उनकी शरण में पहुंचे तब तक विजय जी सांसद बन चुके थे लेकिन उन्होंने हमारा पूरा सम्मान करते हुए हमारा एडमिशन करने की हामी भर ली और हमें कालेज बुलाया तथा प्रिंसिपल डॉ.भाई महावीर के पास हमें ले गए और हमारा एडमिशन कराया इतना ही उन्होंने हमारी फीस भी खुद भरी | उसके बाद बाद ही हम चुनाव लड़ पाए | यह बात अलग थी हमारी पार्टी अलग थी और उनकी पार्टी अलग , है ना महानता क्या आज के समय में कोई भी राजनेता ऐसा कर सकता है | उनकी यादों से जुड़े हमारे पास कई किस्से है जिनकी चर्चा फिर कभी करेगें |

हां एक बात और उनकी यादाश्त बड़ी जबर्दस्त थी करीब दस साल बाद वे फिर लोकसभा का चुनाव लड़े उनका फोन आया बेटा मुझे नहीं मालुम हमारी स्लिप आपको ही बनवानी है लेकिन तब तक हम छात्र राजनीती छोड़ पत्रकारिता में आ चुके थे | कोमन वेल्थ गेम के दौरान विजय जी हमें तीरंदाजी स्टेडियम में मिले डेढ़ दशक बाद भी पहचान गए कहने लगे कभी घर आने बहुत दिन हो गए | विजय नहीं रहे मैं अपनी यादों को अपने तक नहीं रखना चाहता था इसलिए साझा की | ईश्वर उन्हें अपने श्री चरणों में स्थान दें | वैसे स्वयं इंद्र देव नें उन्हें आज श्रधा सुमन अर्पित कर संकेत दिया वे कितने नेक इन्सान थे | बस इतना ही …

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