VicePresident Election: उपराष्ट्रपति चुनाव: NDA की रणनीति तैयार, BJP चुनेगी उम्मीदवार, जीत लगभग तय

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VicePresident Election: उपराष्ट्रपति चुनाव: NDA की रणनीति तैयार, BJP चुनेगी उम्मीदवार, जीत लगभग तय

देश के अगले उपराष्ट्रपति पद को लेकर राजनीतिक गतिविधियां तेज हो गई हैं। राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) ने इस अहम संवैधानिक पद के लिए अपने उम्मीदवार को लेकर फैसला लेने की पूरी जिम्मेदारी भारतीय जनता पार्टी (BJP) को सौंप दी है। सूत्रों के अनुसार, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ही अंतिम रूप से यह तय करेंगे कि NDA की ओर से किस नेता को मैदान में उतारा जाएगा।

हाल ही में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की अध्यक्षता में NDA सांसदों की एक महत्त्वपूर्ण बैठक हुई, जिसमें सभी सहयोगी दलों ने यह स्पष्ट कर दिया कि जो भी उम्मीदवार भाजपा द्वारा तय किया जाएगा, पूरे गठबंधन का उसे समर्थन प्राप्त होगा। संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने जानकारी दी कि उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के चयन का अधिकार प्रधानमंत्री मोदी और जेपी नड्डा को दिया गया है। इसके बाद से राजनीतिक हलकों में संभावित नामों को लेकर चर्चा तेज हो गई है।

12 अगस्त तक हो सकती है घोषणा

विश्वस्त सूत्रों के अनुसार, 12 अगस्त तक एनडीए अपने उम्मीदवार के नाम की घोषणा कर सकता है। उपराष्ट्रपति पद के लिए नामांकन की अंतिम तिथि 21 अगस्त तय की गई है, जबकि मतदान और मतगणना दोनों 9 सितंबर को ही होंगी। इसी दिन यह तय हो जाएगा कि देश को अगला उपराष्ट्रपति कौन मिलेगा।

क्या चुनाव में जीत तय है?

NDA के पास वर्तमान में संसद के दोनों सदनों में पूर्ण बहुमत से अधिक समर्थन है। लोकसभा और राज्यसभा मिलाकर एनडीए के पास लगभग 457 सांसद हैं, जिनमें भाजपा के 240 लोकसभा और 99 राज्यसभा सांसद शामिल हैं। उपराष्ट्रपति चुनाव में केवल सांसद ही वोट डालते हैं और कुल लगभग 788 सांसद वोटिंग के पात्र होते हैं। जीत के लिए जरूरी बहुमत 395 वोटों का है, जबकि एनडीए इस संख्या को बहुत आराम से पार करता दिखाई दे रहा है।

इतना ही नहीं, बीजेडी, वाईएसआर कांग्रेस और बीआरएस जैसे दल, जो सीधे किसी गठबंधन में शामिल नहीं हैं, उन्होंने बीते वर्षों में कई अहम मौकों पर सरकार का समर्थन किया है। ऐसे में राजनीतिक समीकरण यह संकेत दे रहे हैं कि एनडीए का उम्मीदवार भारी अंतर से विजयी हो सकता है।

नामों को लेकर अटकलें, लेकिन फैसला पीएम के हाथ में

उपराष्ट्रपति पद के लिए कई संभावित नामों की अटकलें लगाई जा रही हैं, जिनमें वरिष्ठ भाजपा नेताओं, पूर्व राज्यपालों या दलित-पिछड़ा वर्ग से आने वाले चेहरे शामिल हो सकते हैं। हालांकि अंतिम निर्णय पूरी तरह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विवेक पर छोड़ा गया है। भाजपा की नीति रही है कि किसी भी संवैधानिक पद के लिए ऐसा चेहरा चुना जाए जो राजनीतिक दृष्टि से संतुलन साधे और सामाजिक प्रतिनिधित्व को भी मजबूत करे।

विपक्ष की रणनीति भी सक्रिय

जहां एक ओर एनडीए अपनी रणनीति को अंतिम रूप दे चुका है, वहीं विपक्षी दलों के बीच साझा उम्मीदवार को लेकर मंथन जारी है। INDIA गठबंधन के नेता उपराष्ट्रपति पद को लेकर एकजुट होने का प्रयास कर रहे हैं, लेकिन पिछली बार के राष्ट्रपति चुनाव में विपक्ष की एकता की कमी देखी गई थी, जिसका असर उनके उम्मीदवार की हार में भी नजर आया। अब देखना यह होगा कि क्या इस बार विपक्ष कोई चौंकाने वाला नाम सामने लाता है या फिर एनडीए को सीधी जीत मिलती है।

इस पूरी प्रक्रिया में सबसे अहम बात यह है कि भारतीय राजनीति में संवैधानिक पदों को लेकर जिस प्रकार रणनीतिक समीकरण बनते हैं, वे केवल सत्ता की ताकत नहीं, बल्कि सहमति और विश्वास की राजनीति का भी प्रतीक होते हैं। उपराष्ट्रपति पद का चुनाव न सिर्फ एक संवैधानिक प्रक्रिया है, बल्कि यह देश के राजनीतिक भविष्य की दिशा भी तय कर सकता है।

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