Nitish Kumar Temple Visit: बिहार चुनाव नतीजों से पहले नीतीश कुमार की धर्म यात्रा, सर्वधर्म समभाव का सियासी संदेश या चुनावी रणनीति?
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के नतीजों से पहले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार एक बार फिर चर्चा में हैं — इस बार अपनी आस्था और धार्मिक यात्राओं को लेकर। बुधवार को उन्होंने पटना में मंदिर, गुरुद्वारा और मजार पर जाकर माथा टेका। इसे कई लोग उनकी धार्मिक आस्था का प्रतीक बता रहे हैं, तो कुछ इसे एक सधे हुए सियासी संदेश के रूप में देख रहे हैं — जो बिहार की बहुधर्मी सामाजिक बनावट के बीच “सर्वधर्म समभाव” का प्रतीक बनकर उभरा है।
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बुधवार को अपने करीबी मंत्रियों विजय चौधरी और अशोक चौधरी के साथ सुबह सबसे पहले पटना जंक्शन के पास स्थित प्रसिद्ध महावीर मंदिर पहुंचे। यहां उन्होंने हनुमान जी के दर्शन किए, विधिवत पूजा-अर्चना की और किशोर कुणाल की प्रतिमा पर माल्यार्पण किया। इसके बाद वे पटना साहिब गुरुद्वारा पहुंचे, जहां उन्होंने मत्था टेका और अरदास में शामिल हुए। दोनों स्थलों पर नीतीश कुमार को देखकर समर्थकों की भीड़ उमड़ पड़ी।
इन धार्मिक यात्राओं का तीसरा पड़ाव था पटना हाईकोर्ट के पास स्थित नेहरू पथ की मशहूर दरगाह, जहां उन्होंने हजरत शाह जलाल शहीद रहमतुल्लाह की मजार पर चादर चढ़ाई और बिहार की समृद्धि, शांति और भाईचारे की कामना की। तीनों धर्मस्थलों की यह यात्रा ऐसे समय में हुई है, जब राज्य भर में शुक्रवार को चुनाव परिणाम आने वाले हैं।
पिछले 18 साल से बिहार की सत्ता में रहे नीतीश कुमार इस बार भी सत्ता में वापसी के लिए पूरी ताकत झोंक चुके हैं। अधिकांश एग्जिट पोल्स में एनडीए गठबंधन की स्पष्ट बढ़त दिखाई दे रही है, जिससे जेडीयू खेमे में उत्साह का माहौल है। ऐसे में नीतीश कुमार की यह “धर्म यात्रा” एक सधे हुए आत्मविश्वास और सियासी संकेत दोनों के रूप में देखी जा रही है।
नीतीश कुमार ने मीडिया से कोई बातचीत नहीं की, लेकिन उनके चेहरे की सहज मुस्कान और आत्मविश्वास भरा भाव इस बात की ओर इशारा कर रहा था कि वे चुनाव परिणाम को लेकर निश्चिंत हैं। वहीं उनके करीबी मंत्री विजय चौधरी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में बताया कि मुख्यमंत्री ने ईश्वर के प्रति आभार व्यक्त किया है कि बिहार में शांतिपूर्ण और निष्पक्ष चुनाव संपन्न हुए। उन्होंने यह भी कहा कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का मानना है कि “जनसेवा ही सबसे बड़ा धर्म है” और वे बिना किसी भेदभाव के सभी के लिए काम करते हैं।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि नीतीश कुमार हमेशा से इस तरह की यात्राओं के जरिए एक व्यापक सामाजिक संदेश देते रहे हैं। उनका मकसद यह दिखाना होता है कि वे किसी एक धर्म या समुदाय तक सीमित नहीं हैं, बल्कि बिहार की सभी धार्मिक भावनाओं और परंपराओं का सम्मान करते हैं। इस बार भी, जब बिहार का राजनीतिक समीकरण फिर से एनडीए के पक्ष में जाता दिख रहा है, नीतीश कुमार ने अपने इस संदेश को दोहराया है कि सत्ता हो या सेवा — वे सभी धर्मों को साथ लेकर चलने में विश्वास रखते हैं।
कुल मिलाकर, चुनाव परिणाम आने से पहले नीतीश कुमार की यह आस्था यात्रा न केवल एक आध्यात्मिक पहल है, बल्कि एक सटीक सियासी संकेत भी है — जो बिहार की बहुधर्मी एकता और भाईचारे की परंपरा को मजबूती देने वाला संदेश देती है।



