Hindi Imposition Protest: हिंदी थोपने के विरोध में मुंबई में बड़ा प्रदर्शन आज, ठाकरे बंधुओं का समर्थन संभव
महाराष्ट्र में त्रिभाषा नीति के खिलाफ विरोध अब निर्णायक मोड़ पर पहुंच चुका है। 7 जुलाई को मुंबई के आजाद मैदान में एक बड़े जनआंदोलन का आयोजन किया जा रहा है, जिसका नेतृत्व “शालेय शिक्षण अभ्यास समिति” कर रही है। यह आंदोलन राज्य सरकार द्वारा हिंदी को अनिवार्य बनाए जाने की कोशिशों और त्रिभाषा फार्मूले के विरोध में हो रहा है। इस प्रदर्शन को मराठी अस्मिता और मातृभाषा की रक्षा के प्रतीक के रूप में देखा जा रहा है, और इसे महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (एमएनएस) के प्रमुख राज ठाकरे और शिवसेना (यूबीटी) प्रमुख उद्धव ठाकरे का समर्थन मिलने की पूरी संभावना जताई जा रही है।
इस आंदोलन की पृष्ठभूमि में राज्य सरकार द्वारा प्रोफेसर नरेंद्र जाधव की अध्यक्षता में गठित त्रिभाषा समिति है, जिसे स्कूल शिक्षा में तीन भाषाओं—मराठी, हिंदी और अंग्रेज़ी—को अनिवार्य रूप से लागू करने की दिशा में नीति निर्माण का कार्य सौंपा गया है। हालांकि सरकार ने पुराने आदेश वापस ले लिए हैं, पर अब नए रूप में इसे आगे बढ़ाने के प्रयासों ने फिर से जनाक्रोश को हवा दे दी है।
समिति के सदस्य और शिक्षाविद दीपक पवार ने साफ किया है कि यह सरकार की रणनीति है कि पहले आदेशों को वापस लेकर जनता को भ्रमित किया जाए और फिर एक नई समिति बनाकर उसी नीति को धीरे-धीरे लागू किया जाए। उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार पारदर्शिता के बिना निर्णय ले रही है और शिक्षा जैसे संवेदनशील विषय पर राजनीतिक लाभ के लिए निर्णयों को लंबित और गुमराह करने वाले तरीके से ले रही है। पवार ने चेताया कि अगर सरकार ने तुरंत कदम नहीं उठाए, तो यह आंदोलन राज्यव्यापी जनआक्रोश में बदल जाएगा।
राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे पहले ही इस मुद्दे पर खुलकर सरकार के खिलाफ बोल चुके हैं। उनका मानना है कि हिंदी को स्कूल शिक्षा में अनिवार्य बनाकर मराठी भाषा और संस्कृति पर आक्रमण किया जा रहा है। वे इसे मराठी अस्मिता के साथ अन्याय मानते हैं और इसके खिलाफ आवाज़ बुलंद करने का ऐलान कर चुके हैं।
आजाद मैदान में आयोजित होने वाला यह प्रदर्शन राज्य सरकार पर जबरदस्त दबाव बना सकता है। राज्यभर से शिक्षक, विद्यार्थी, सामाजिक कार्यकर्ता और मराठी भाषी नागरिक बड़ी संख्या में इस प्रदर्शन में शामिल होने की तैयारी कर रहे हैं। यह अब तक का सबसे बड़ा जन आंदोलन साबित हो सकता है जो सीधे-सीधे भाषा नीति को चुनौती देता है।
राजनीतिक हलकों में भी इस आंदोलन को लेकर हलचल तेज हो गई है। जहां कुछ नेता इसे मराठी अस्मिता की रक्षा का आंदोलन बता रहे हैं, वहीं सरकार पर भी लगातार यह दबाव बढ़ रहा है कि वह इस मुद्दे पर स्पष्ट रुख अपनाए और त्रिभाषा नीति को लेकर पारदर्शी और लोकतांत्रिक संवाद की पहल करे।



