परशुराम भवन में गोवर्धन पूजा का भव्य आयोजन : महेंद्र सिंह पाराशर

0
14
महेंद्र सिंह पाराशर
परशुराम भवन में गोवर्धन पूजा का भव्य आयोजन : महेंद्र सिंह पाराशर

परशुराम भवन में गोवर्धन पूजा का भव्य आयोजन : महेंद्र सिंह पाराशर

* भगवान कृष्ण की लीला से जुड़ा है गोवर्धन पर्व

नई दिल्ली ( सी.पी.एन.न्यूज़ ) : ब्राह्मण समाज संस्था, यमुना विहार द्वारा भगवान श्री परशुराम भवन में गोवर्धन पूजा का भव्य आयोजन संपन्न हुआ। इस अवसर पर संस्था के प्रधान पूर्व निगम प्रत्याशी, और मुख्य समाज सेवक महेन्द्र सिंह पाराशर ने संपूर्ण कार्यकारिणी एवं समाज के सदस्यों के साथ कार्यक्रम में भाग लेकर समरसता एवं श्रद्धा का सन्देश दिया। कार्यक्रम के दौरान समाज के गणमान्य नागरिकों, वरिष्ठजनों एवं युवा सदस्यों ने परंपरागत रीति-रिवाजों के अनुरूप पूजा-अर्चना में भाग लिया। गोवर्धन पूजा के इस पर्व ने समाज में एकता, संस्कृति और धार्मिक भावनाओं को और सुदृढ़ किया। महेंद्र पाराशर नें गोवर्धन पूजा पर विस्तार से प्रकाश डाला |

श्री पाराशर नें कहा गोवर्धन पूजा हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण पर्व है, जो दीपावली के अगले दिन, यानी कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को मनाया जाता है। यह पर्व भगवान श्री कृष्ण जी की लीला से जुड़ा है। मान्यता है कि इस भगवान श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत उठाकर ब्रजवासियों की रक्षा की थी। गोवर्धन पूजा को अन्नकूट के नाम से भी जाना जाता है, जहां विभिन्न व्यंजनों से बने भोजन को भगवान को अर्पित किया जाता है। यह त्योहार मुख्य रूप से उत्तर भारत, विशेषकर ब्रज क्षेत्र में बड़े उत्साह से मनाया जाता है। श्री पाराशर नें बताया मान्यता है ब्रज के लोग इंद्र देव की पूजा करते थे, क्योंकि वे वर्षा के देवता माने जाते हैं।

एक दिन भगवान श्रीकृष्ण ने देखा कि सभी ग्रामवासी इंद्र की पूजा की तैयारी कर रहे हैं। उन्होंने अपनी मां यशोदा से पूछा कि इंद्रदेव की पूजा क्यों की जाती है। यशोदा ने बताया कि इंद्र देव वर्षा करते हैं, जिससे फसलें उगती हैं और पशुओं को चारा मिलता है। कृष्ण ने कहा कि वर्षा तो बादलों से होती है और फसलें गोवर्धन पर्वत की वजह से समृद्ध होती हैं, क्योंकि पर्वत वर्षा रोकता है और नदियां बहती हैं। इस कारण इंद्र की बजाय गोवर्धन पर्वत की पूजा करनी चाहिए | श्री पाराशर नें आगे वर्णन किया भगवान श्री कृष्ण के कहने पर ग्राम वासियों ने गोवर्धन जी की पूजा की जिस पर र इंद्रदेव क्रोधित हो गए। उन्होंने भारी वर्षा शुरू कर दी, जिससे ब्रज डूबने लगा। इस पर भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी छोटी उंगली पर गोवर्धन पर्वत उठा लिया और सात दिनों तक ग्रामवासियों को वर्षा से बचाया।

अंत में इंद्र ने अपनी गलती मानी और श्री कृष्ण से माफी मांगी। इस दिन कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि थी। इसी कारण उस दिन से इसे गोवर्धन पूजा के रूप में मनाया जाने लगा। आचार्य राजन शर्मा ने इस अवसर पर समाज के सभी सदस्यों को बधाई देते हुए कहा कि, “गोवर्धन पूजा हमें सेवा, विनम्रता और एकता का संदेश देती है। इस अवसर पर हमें अपने समाज और संस्कृति के प्रति गर्व अनुभव करना चाहिए।” कार्यक्रम का समापन प्रसाद वितरण और सामूहिक मंगलकामनाओं के साथ किया |

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here