भागवत में कंस वध तथा कृष्ण रुक्मणी विवाह का वृतांत सुन झुमने लगे श्रद्धालु किस्मत वालों को मिलती है भागवत सुनने को : राजीव साहनी

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राजीव साहनी
भागवत में कंस वध तथा कृष्ण रुक्मणी विवाह का वृतांत सुन झुमने लगे श्रद्धालु किस्मत वालों को मिलती है भागवत सुनने को : राजीव साहनी

भागवत में कंस वध तथा कृष्ण रुक्मणी विवाह का वृतांत सुन झुमने लगे श्रद्धालु किस्मत वालों को मिलती है भागवत सुनने को : राजीव साहनी

नई दिल्ली ( सी.पी.एन.न्यूज़ ) : श्री सनातन धर्म मंदिर नेहरू नगर में भागवत कथा के तहत श्री कृष्ण लीला,उद्धव गोपी संवाद ,कंस वध तथा कृष्ण रुक्मणी विवाह का वृतांत सुनाया गया | भागवत का गुणगान कथावाचक पंडित अशोक दीक्षित नें अपनी मधुर वाणी से किया | पंडित अशोक दीक्षित नें भगवान श्री कृष्ण की लीलाओं का रोचक और भावपूर्ण वर्णन किया | पंडित अशोक दीक्षित नें बड़े विस्तार से भगवान श्री कृष्ण की लालाओं का वर्नण किया जिसपर भक्त प्रफुल्लित हो गए और झूमने लगे |

नेहरु नगर मन्दिर के प्रधान प्रसिद्ध समाजसेवी विश्व हिन्दू परिषद के प्रान्त उपाध्यक्ष राजीव साहनी मन्दिर के कार्यकारी मंत्री तथा विश्व हिन्दू परिषद के जिला अध्यक्ष लाजपत नगर कर्ण कपूर नें बताया भागवत सुनने के लिए बड़ी संख्या में लोग मन्दिर प्रांगण में पधार रहे हैं | और धर्मलाभ अर्जित कर रहे है | राजीव साहनी नें कहा भागवत सुनने का सौभाग्य किस्मत वालों का ही होता है | कंस वध की लीला का बखान करते हुए पंडित जी नें कहा भगवान भाव के भूखे हैं, श्रद्धा, भाव व समर्पण जैसा होगा भगवान भी वैसा ही आशीर्वाद अपने भक्तों को देते हैं। उन्होंने कहा कि पूतना के मारे जाने पर कंस को यह भान हो गया था कि कृष्ण का वध करना उसके अपने जीवन के लिए जरूरी है।

ऐसा सोचकर कंस ने बार-बार अनेकों राक्षसों को कृष्ण का वध करने को भेजा लेकिन वह सभी वहां जाकर मृत्यु को प्राप्त हुए। बाद में कंस ने उन्हें अपने यहां बुलाकर वध करने की योजना बनाई। कृष्ण बलराम के साथ मथुरा पहुंचे तो उन्हें हाथी के पैरों तले कुचलवाने का प्रयास किया। सभी प्रयास असफल होते देख कंस स्वयं कृष्ण का वध करने आया मगर तब भगवान कृष्ण ने उसका वध कर अपने माता-पिता वासुदेव व देवकी को बंदी ग्रह से छुड़ाया तथा वासुदेव का राज्याभिषेक किया। रुक्मिणी विवाह का जिक्र करते हुए अशोक दीक्षित नें कहा कि गोपियों ने भगवान श्रीकृष्ण से उन्हें पति रूप में पाने की इच्छा प्रकट की। भगवान श्रीकृष्ण ने गोपियों की इस कामना को पूरी करने का वचन दिया। अपने वचन को पूरा करने के लिए भगवान ने महारास का आयोजन किया।

इसके लिए शरद पूर्णिमा की रात को यमुना तट पर गोपियों को मिलने के लिए कहा गया। सभी गोपियां सज-धजकर नियत समय पर यमुना तट पर पहुंच गईं। कृष्ण की बांसुरी की धुन सुनकर सभी गोपियां अपनी सुध-बुध खोकर कृष्ण के पास पहुंच गईं। उन सभी गोपियों के मन में कृष्ण के नजदीक जाने, उनसे प्रेम करने का भाव तो जागा, लेकिन यह पूरी तरह वासना रहित था। इसके बाद भगवान ने रास आरंभ किया। माना जाता है कि वृंदावन स्थित निधिवन ही वह स्थान है, जहां श्रीकृष्ण ने महारास रचाया था। यहां भगवान ने एक अद्भुत लीला दिखाई थी, जितनी गोपियां उतने ही श्रीकृष्ण के प्रतिरूप प्रकट हो गए। सभी गोपियों को उनका कृष्ण मिल गया और दिव्य नृत्य व प्रेमानंद शुरू हुआ। रुक्मिणी विवाह का वर्णन करते हुऐ कहा कि भगवान श्रीकृष्ण ने सभी राजाओं को हराकर विदर्भ की राजकुमारी रुक्मणी को द्वारका में लाकर उनका विधि पूर्वक पाणिग्रहण किया।

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